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________________ होना चाहिए दूसरा पद विभक्त्यन्त हो या न हो संधि में कोई अन्तर नहीं आता। राजस्थानी भाषा में विसर्ग का प्रयोग नहीं होता इसलिए जयाचार्य ने दूसरे पद को विसर्ग रहित स्वीकार किया है। कारः कर कारस्कर, पारः पर नो पेख । पारस्पर, भाः कर तणो भास्कर रवि संपेख ।। -विसर्ग संधि दोहा १. वाक् शूर ए रूप नो, वाक् छूर वा होय । एक ठोड रहे मूलगो, वाक्शूर अवलोय ॥ -व्यंजन संधि दोहा ६ सूत्र का उल्लेख, वृत्ति का अर्थ, उदाहरण और साधनिका को दो पद्यों में ही सरलता से अभिव्यक्ति दी गई है। शे चक् वा ३ त्रिपद ए सुत्र, नांत पद अवधार । चक् आगम श पर छते, विकल्प करि विचार ॥ भवान् शूर श पर अछ, स्तोश्चु भवानशूर । भवाञ्च्छर चक् आगम स्तोश्चु चपच्छ पूर ।। - व्यंजनसंधि ३२-३३ शे चक् वा यह सूत्र है। इसकी वृत्ति का अर्थ है न अंत और पद संज्ञावाले शब्द से परे श हो तो चक् का आगम विकल्प से होता है । उदाहरण है-भवान् शूर।। "स्तोश्चु भिश्च' सूत्र से न् को न हो गया, रूप बन गया भवान शूर । जहां चक् का आगम हुआ वहां रूप बना भवाञ्चछूर । चपाच्छ सूत्र से शूर के श को छ हो गया। स्तो: श्चुभिश्चः त्रिपद सुत्र सकार तवर्ग तणो य । सकार चवर्ग ना योग थी शकार चवर्ग होय ।। कस् चरति चु योग थी, कश्चरति श होय । कस् शूर श योग थी, कश्शूर श अवलोय ।। तत् चित्रं चु योग थी, तच्चित्रं च होय । तत् शास्त्रं तच्छास्त्रं ह्व चपाच्छ स्तोश्चु दोय ।। तत् श्रवणं तच्छवणं ह्र, चपाच्छः स्तोश्चुः । कस् छादयति नो हुवे, कश्च्छादयति ऊह ॥ -- व्यंजन संधि दोहा १३ से १६ ___ शकार और चवर्ग के योग से सकार और तवर्ग को शकार और चवर्ग हो जाता है । चार दोहों में ६ उदाहरण देकर इस सूत्र को स्पष्ट किया गया है। भाषाओं के अपने अपने नियम होते हैं। उन्हें दूसरी भाषा से मापा नहीं जा सकता। राजस्थानी भाषा में हलंत वर्ण का प्रयोग नहीं होता। इसलिए स्वर रहित एक वर्ण के आदेश को उच्चारण की दृष्टि से अकार सहित स्वीकार किया गया है। खंड २१, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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