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________________ सारस्वत व्याकरण 'पंचसंधि की जोड' एक अध्ययन मुनि श्रीचंद 'कमल' 'सारस्वत' संस्कृत भाषा की व्याकरण है । इसके रचयिता श्री अनुभूतिस्वरूपाचार्य हैं । इस व्याकरण में ७०० सूत्र हैं। सरस्वती देवी से सारस्वत व्याकरण का सूत्र पाठ प्राप्त कर अनुभूतिस्वरूपाचार्य ने उसकी सरल प्रक्रिया बनाई। पाणिनीय आदि व्याकरण अति प्रौढ और अति विस्तीर्ण होने के कारण अल्पमति वाले विद्यार्थियों के लिए दुबोध्य हैं । सारस्वत व्याकरण सरल होने के कारण पठन-पाठन में लोकप्रिय है। इस व्याकरण पर अनेक आचार्यों ने टीकाएं लिखी हैं। केवल जैन आचार्यों की ही २६ टीकाओं का उल्लेख मिलता है --- नाम रचनाकार काल १. सुबोधिका आचार्य चन्द्रकीर्ति १६वीं शती का अंत २. क्रियाचंद्रिका गुणरत्न वि० सं० १६४१ ३. चंद्रिका मेधविजय अज्ञात ४. दीपिका मेघरत्न वि० संवत् १५३६ ५. धातुतरङ्गिणी आचार्य हर्षकीर्तिसूरि ६. न्याय रत्नावली दयारत्न मुनि संवत् १६२६ ७. पंचसंधि टीका सोमशील अज्ञात ८. पचसंधि बालावबोध उपाध्याय राजसी . १८वीं शती ९. प्रक्रिया वृत्ति विशालकीर्ति १७वीं शती १०. भाषा टीका आनंद निधान १८वीं शती ११. यशोनन्दिनी यशोनन्दी १२. रूपरत्नमाला नयसुंदर संवत् १७७६ (१४००० श्लोक परिमाण) १३. विद्वच्चिन्तामणी विनयसागर सूरि १८३७ (पद्यात्मक) १४. शब्द प्रक्रियासाधनी आचार्य विजयराजेन्द्रसूरि २०वीं शती १५. शब्दार्थचन्द्रिका हंसविजयगणी संवत् १७०८ १६. सारस्वत टीका सत्य प्रबोध अज्ञात १७. सारस्वत टीका सहजकीति १८. सारस्वत टीका देवचन्द्र १९. सारस्वत टीका धनसागर खंड २१, बंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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