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है-"समासे उच्चारण प्रयत्नलाघवं स्यात्" अर्थात् उच्चारण में प्रयत्नलाघव ही समास का उद्देश्य है । इस सम्बन्ध में सारस्वतकी चन्द्रकीर्ति टीका में भी कहा गया है :
"विभक्तिलृप्यते यत्रतदर्थस्तु प्रतीयते ।
ऐकपद्य पदानां व स समासोऽभिधीयते । (४) समास के विषय में उक्त विवेचन के उपरान्त अव्ययीभाव समास (जो समास का प्रथम भेद है) के विषय में निरूपण करते हैं। अव्ययीभाव समास
अव्ययीभाव समास में प्रायः पूर्वपद के अर्थ की प्रधानता होती है-"तत्र पूर्व- . पदप्रधानोऽव्ययी भावः (पृ० २३६)।" अव्ययीभाव समास संज्ञक सूत्र दिया गया है'पूर्वेऽव्ययेऽव्ययी भावः (५)।" अर्थात् अव्यय के पूर्वपद में रहने पर जो अन्वय है वह अव्ययीभाव संज्ञक समास होता है । यथा-"अधिस्त्रि गहकार्यम्"। "अधिस्त्रि" यह समस्त पद है। यहां "पूर्वेऽव्ययेऽव्ययी भावः" सूत्र से समास हुआ है। "अधिस्त्रि" का लौकिक विग्रह है-"स्त्रियाम् इति"। यहां समास का अवयव "स्त्रि" शब्द विग्रह में आया है। "अधिस्त्रि" का अलौकिक विग्रह है-अधि+स्त्री+डि. इस अलौकिक विग्रह में समास हुआ है “अधि" अव्यय सप्तमी विभक्ति के अर्थ अधि-करण का वाचक है । यह सुबन्त है । अतः "पूर्वेऽव्ययेऽव्ययीभावः सूत्र से उक्त की अव्ययीभाव समास संज्ञा हुई । तदनंतर सूत्र दिया गया है
"समासे प्रत्ययो:-समासे वर्तमानाया विभक्तेः प्रत्यये परे च विभक्तेलंग्भवति (पृ. २३९)।" भतः इस सूत्र द्वारा विभक्ति लोप होने पर अधिस्त्रि हुआ। “स नपुंसकम् (ध) सूत्र के अनुसार अव्ययीभाव समास नपुंसक लिंग होता है । नपुंसकलिंग होने पर अग्रिम सूत्र दिया गया है
अव्ययी भावात्" अर्थात् अव्ययीभाव से परे विभक्ति का लोप होता है। अतः सि विभक्ति का लोप होने पर "भधिस्त्रि" रूप हुआ है।
यथा शब्द यदि भसादृश्य अर्थ में प्रयुक्त हो तो वहां अव्ययीभाव समास "यथाsसादृश्ये" सूत्र से होता है । यथा---शक्तिमनतिक्रम्य करोति इति यथाशक्तिः। शक्तिम् यह द्वितीया विभक्ति एकवचन का रूप है । यथा शब्द पूर्व में होने के कारण" पूर्वेऽव्ययेऽव्ययीभावः सूत्र से इसकी भव्ययीभाव समास संज्ञा हुई। "अव्ययीभावात्" सूत्र से विभक्ति लोप होकर "यथाशक्ति" रूप सिद्ध हुआ। यहां 'यथाशक्ति' का तात्पर्य शक्त्यनुसारेण करोति-से है।
सादृश्य अर्थ में समास नहीं होता। यथा-"यथाविष्णुस्तथा शिवः, अत्र न समासः। तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास में प्रायः उत्तरपद के अर्थ की प्रधानता होती है। यहां तत्पुरुषसंज्ञक समास करने हेतु कहा गया गया है-द्वितीयान्त भादि पद के पूर्व पद में स्थित रहते जो अन्बय है वह तत्पुरुष संशक समास होता है। इस हेतु सूत्र दिया गया है"अमादीतत्पुरुषः-द्वितीयाद्यन्ते पूर्वपदे सति योऽन्वयः स तत्पुरुषसंज्ञक समासो भवति ।
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तुलसी प्रज्ञा
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