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________________ पुस्तक समीक्षा 8. Restoration of The Original language of Ardhamāgadhi Texts by K.R.Chandra, Prakrit Jain Vidya Vikas Fund, Ahmedabad, 1994 Price: Rs. 80.00. 'प्राकृत जैन विद्या विकास फण्ड' कुछ उत्साही जैन बन्धुओं ने बनाया है जिससे पिछले डेढ़ दशक में दस प्रकाशन हुए हैं। उन्हें बिना हानि-लाभ के ६४२.०० रु० में विक्रय किया जा रहा है । 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोष' और 'भाषिक दृष्टि से आचारांग के प्रथम अध्ययन के नमूने'--प्रेस में मुद्रणाधीन • इस विकास फण्ड के अवैतनिक मंत्री प्रो० के. आर. चन्द्र पिछले काफी समय से अर्द्धमागधी आगमों की भाषा पर शोध-खोज कर रहे हैं । दो वर्ष पूर्व उनकी कृति 'प्राचीन अर्द्धमागधी की खोज में प्रकाशित हुई तो तुलसी प्रज्ञा के पुस्तकसमीक्षा स्तभ में उनके प्रयास को स्तुत्य और अनुकरणीय बताकर अर्द्धमागधी आगमों के तुलनात्मक संस्करण प्रकाशित किए जाने की ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया गया था। • प्रस्तुत प्रकाशन ----'अद्धमागधी आगमों की मूल भाषा का पुनर्लेखन' उसी ओर प्रचोदित दीख पड़ता है क्योंकि इसमें 'प्राचीन अर्द्धमागधी की खोज मेंप्रकाशन में दी गई सूचनाओं से अधिक कुछ कहा गया नहीं लगता। यहां तक कि तुलसी प्रज्ञा (खण्ड १८ अंक १) के सम्पादकीय में उठाये प्रश्न को भी अनुत्तरित छोड़ दिया गया है। • पुस्तक के दो भाग हैं। प्रथम भाग में यथा, तथा, प्रवेदितम्, एकदा, एक, एके, एकेषाम्, औपपादिक, औपपातिक, लोकम्, लोके और क्षेत्रज्ञ अथवा यथा तथा; प्रवेदितम् ; एकदा, एक, एके, एकेषाम् ; औपपादिक, औपपातिक; लोकम् , लोके और क्षेत्रज्ञ-कुछ छह शब्दों के उपलब्ध रूपों पर विचार किया गया है । दूसरे भाग में ऐसे १४ शब्दों पर विचार करना प्रस्तावित है। दुर्भाग्य से लेखक को वि. सं. १३२७ से पुराने हस्त-लेख देखने का सुयोग नहीं मिला। उन्होंने प्रस्तावित १४ शब्दों में जैसलमेर के हस्तलेख सं० १२८९ का हवाला भी केवल पांच बार दि • इस संबंध में आचार्य महाप्रज्ञ ने आगम संपावन की समस्याएं-शीर्षक से एक लघु पुस्तिका प्रकाशित की है जिसकी समीक्षा में डॉ. के. भार. चन्द्र ने स्वयं उसे परम उपयोगी माना है (तुलसी प्रज्ञा २०.२ पृ० १६१-२)। उसमें खण्ड २१, अंक २ २३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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