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________________ मानतुग : भक्ताम्भर स्तोत्र [क] डॉ. प्रकाशचन्द्र जैन मानतुंग का कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त नहीं मिलता। मिले भी कैसे, साहित्य के इतिहास में एक-दो नहीं, बीस-पच्चीस मानतंग पाए जाते हैं। एक विद्वान ने कहा कि भक्ताम्भर स्तोत्र के कर्त्ता तो मानतुंग सूरि हैं।' पर ईसा की पहली सदी से १३ वीं सदी तक ही दस मानतुंग सूरि मिल गए। अब कैसे पता चले कि इनमें से भक्ताम्भर स्तोत्र के रचयिता कौन से हैं । ' उपलब्ध ग्रन्थों में जहां उनके जीवनवृत्त का उल्लेख है, वहां भी कोई उन्हें श्वेताम्बर महाकवि बताते हुए बाद में दिगम्बर दीक्षा लेकर गुरु के आदेश से भक्ताम्भर रचने की बात कहता है। तो कोई उन्हें काशी के सेठ धनदेव का पुत्र बताते हुए, पहले दिगम्बरी और बाद में श्वेताम्बरी दीक्षा लेकर भक्ताम्भर की रचना की बात कहता है। जबकि एक उल्लेख उन्हें ब्राह्मण कवि बताता है, जो बाद में विभिन्न परिवर्तनों के पश्चात् दिगम्बर साधु हो गए थे तथा उन्हीं ने भक्ताम्भर स्तोत्र की रचना की। जो भी हो, प्रतिभा, कवित्व और भक्ति की कोई जाति नहीं होती। मानतुंग के समय और रचनाओं को लेकर भी कुछ कम मतभेद नहीं है। लोगों ने ईसा की तीसरी सदी से लेकर ग्यारहवीं सदी तक अलग-अलग उनका समय माना है । पर तथ्यों की कसौटी पर कसने से पता चलता है कि उनका समय ईसा की ७ वीं सदी का मध्य भाग होना चाहिए। प्रख्यात इतिहासविदों और समीक्षकों के कथन से भी इसी बात की पुष्टि होती है। उनकी रचनाओं के सम्बन्ध में भी कुछ लोग भक्ताम्भर स्तोत्र को ही उनकी एक मात्र कृति मानते हैं। तो कुछ भयहर स्तोत्र नमिऊण स्तोत्र परमेष्ठी स्तवन को भी उनकी रचना बताते हैं। इन बातों का युक्तिसंगत समाधान तो, इस विषय पर पूर्ण शोध होने पर ही दिया जा सकता है। यहां तो भयहर-स्तोत्र पर थोड़ा सा प्रकाश डालते हुए मुख्यतः भक्ताम्भर स्तोत्र के सम्बन्ध में ही चर्चा की जा रही है। भयहर स्तोत्र ___ यह प्राकृत भाषा में इक्कीस या तेवीस पद्यों की भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति से सम्बद्ध रचना है। जिसे आचार्य चतुर्विजय ने सम्पादित करके अहमदाबाद से प्रकाशित जैन स्तोत्र सन्दोह द्वितीय भाग में संकलित किया है। इसमें आठ भयों का वर्णन है, जिनका भक्ताम्मर स्तोत्र में वर्णित आठ भयों से काफी साम्य है। वण २१, बंक २ १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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