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________________ जाता है। २. उपमेय का उत्कर्ष एवं उपमान के अपकर्ष सिद्धि के लिए कल्पना या हेतु का निर्देश। ३. सादृश्य शाब्द न होकर आर्थ या व्यंग्य होता है एवं ४. वैधर्म्य की कल्पना द्वारा उपमेय-उपमान में भेद का कथन किया जाता है। रत्नपालचरित में अनेक स्थलों पर इस अलंकार का प्रयोग हुआ है :अहनिशं पाति भयान्मनुष्यानऽयं दिनेष्वेव ममांशुराशिः । इतीव तस्याऽवनिपालमोलेः सूर्यः सपर्येच्छुरिवोन्मुखोऽभूत् ।।" 'मेरा किरण-जाल दिन में ही मनुष्यों को भय से बचाता है, लेकिन यह राजा दिन और रात दोनों में मनुष्यों की भय से रक्षा करता है', यह सोचकर सूर्य मानो पूजा करने के लिए इच्छुक होकर उसके समीप आ गया। यहां पर राजा का आधिक्य वणित है । सूर्य दिन में ही संसार की रक्षा करता है लेकिन राजा रात-दिन दोनों समय में रक्षा करता है इसलिए सूर्य से महान् है।। सरोवर की उत्कृष्टता या श्रेष्ठता अधोविन्यस्त श्लोक में व्यञ्जित है : पानार्थमन्ये वितरन्ति वित्त-- ___ महं तदा जीवनमर्पयामि । तेनैव मह्य महिजानिरत्र विशालं कायं सदनं ददाति ८ वृक्ष (भूरुह) से राजा (भूधव) की श्रेष्ठता का प्रतिपादन :अनल्पकालं सलिलाऽभिषिक्तः __. फलप्रदः स्यादिह भूरुहोऽपि । सरण्या सकृन्मे मनसा स्मृतोपि, फलप्रदस्त्वं किल भूधवोऽपि ॥" (सखी कहती है) लम्बे समय तक सींचने पर वृक्ष फल देते हैं, किन्तु तुम भूधव (राजा) होकर भी मेरी सखी द्वारा एक बार याद करने पर फलप्रद हो गए हो। यहां पर राजा की उत्कृष्टता ब्यंग्य है। वसन्तपुर नगर स्वर्ग से भी श्रेष्ट था, इसका प्रतिपादन अधोविन्यस्त श्लोक में सुन्दर रूप अस्ति स्म तस्मिन्नचले वसन्ता ____भिधं पुरं सर्व पुर प्रधानम् । धरापुरन्ध्यास्तिलकायमानं कान्त्या हतस्वर्गपुराभिमानम् ॥ शक्रपुर के जलाशय गंगाजल से भी स्वच्छ एवं निर्मल जल को धारण करते तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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