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________________ २. उपमा उपमा सादृश्य मूलक अलंकार है। इस अलंकार में दो पदार्थों को समीप रखकर एक-दूसरे के साथ साधर्म्य स्थापित किया जाता है। इसका प्रथम शास्त्रीय विवेचन निरुक्तकार यास्क ने किया है । न्यून गुणवाले की अधिक गुणवाले के साथ तुलना की जाती है । दंडी दो पदार्थों के साम्य-प्रतिपादन को उपमा मानते हैं। मम्मट ने उपमा की वैज्ञानिक परिभाषा दी है । इनके अनुसार उपमेयोपमान में भेद होने पर भी उनके साधर्म्य को उपमा कहते हैं साधर्म्यमुपमाभेदे । उपमानोपमेययोरेव नतु कार्यकारणादिकयोः साधर्म्य भवतीति तयोरेव समानेन धर्मेण संबंध उपमा । भेद ग्रहणमनन्वयव्यच्छेदाय ।२८ ____ उपमा के चार तत्त्व होते हैं-उपमेय, उपमान, साधर्म्य वाचक और साधारण धर्म। __उपमेय-जिसकी उपमा दी जाए या जिसका वर्णन किया जाए उसे उपमेय कहते हैं । विषय, प्रस्तुत, वर्ण्य, प्रकृत, प्राकरणिक तथा प्रासंगिक आदि शन्द उपमेय के वाचक (समानार्थक) हैं।। उपमान-- जिसके साथ उपमेय की समता या तुलना की जाए, उसे उपमान कहते हैं । अप्रस्तुत अप्रकृत, अवर्ण्य, विषयी, अप्राकरणिक, अप्रासंगिक आदि इसके अनेक नाम हैं । यह उपमेय से अधिक गुण वाला होता है :-उपमीयते सादृश्यमानीयते येनोत्कृष्टगुणेनान्यत् तदुपमानम्, यदुपमीयते न्यूनगुणं तदुपमेयम् । वाचक (साधर्म्य) औपम्यसूचक शब्दों को वाचक कहते हैं। इनकी संख्या अनेक है । इव, वत्, वा, यथा, समान, तुल्य, निभ, संनिभ, सम, लौं, इमि, जिमि, जैसा, वैसा आदि शब्द साधयं वाचक हैं । साधारण धर्म-उपमेय और उपमान में जिस धर्म या वैशिष्टय के कारण साम्य स्थापित किया जाता है उसे साधारण धर्म कहते हैं । महत्त्व-उपमा को सभी अलंकारों में श्रेष्ठ समझा जाता है। प्राचीनता, व्यापकता, रमणीयता, लोकजनीनता एवं सौन्दर्य-प्रियता की दृष्टि से उपमा का अत्यधिक महत्त्व है । कवि राजशेखर ने इसे अलंकारों का 'शिरोरत्न' कहा है, और रुय्यक ने अलंकारों का बीजभूत तत्त्व माना है । अप्पय दीक्षित ने इसके महत्त्व का संगायन करते हुए इसे उस नटी के समान माना है, जो नृत्य की भूमिका में अपने विविध रूपों को धारण कर सहृदयों का रंजन करती है : उपमैका शैलूषी सम्प्राप्त चित्रभूमिका भेदान् । रंजयति काव्यरंगे नृत्यंती तद्विदां चेतः ॥ वे उपमा के ज्ञान को ब्रह्मज्ञान की भांति मानते हैं ।३१ दण्डी ने सभी अलंकारों को उपमा का प्रपंच कहा है--उपमा नाम सा तस्याः प्रपंचोऽयं प्रदर्श्यते ।३२ प्राचीन काल से ही भारतीय-संस्कृति के उद्गायक कवियों ने उपमा का महत्त्व अंकित किया है। वाल्मीकि, ब्यास और कालिदास की उपमाएं प्रथित हैं। 'उपमा खण्ड २१, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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