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________________ अहिंसक कार्यों से ही सम्भव है । कई शांति आंदोलनों, गांधी, मार्टिन लूथर किंग आदि ने अहिंसा की शक्ति का पूर्ण परिचय प्रस्तुत किया है । संरचनात्मक परिवर्तन से समाज में शांति के पक्षधर गाल्टुंग रहे हैं । उनका मानना है - " शासक उच्च वर्ग, शिक्षा के लक्ष्यों का निर्धारण वर्तमान ढांचे की सुरक्षा के लिए करता है, जो हिंसा की स्वीकृति है । हमें इस संस्कृति को संरचनात्मक परिवर्तन से तोड़ना होगा क्योंकि संरचनात्मक हिंसा असमान सम्बन्धों की प्रतीक है । हमें इस ढांचे के निषेध के लिए प्रयत्न करना चाहिए तथा अन्याय पर आधारित ढांचे को न्याय पर आधारित ढांचे में रूपांतरित करना चाहिए । मानवीय सुधार द्वारा शांति स्थापित करने के दृष्टिकोण में व्यक्ति को महत्त्व दिया गया है। कांट के अनुसार • युद्ध कोई ईश्वरीय कार्य या दैविक निर्णय नहीं है । • शांति का अनुभव वर्तमान की आवश्यकता है। जिसे भविष्य के लिए टाला नहीं जा सकता 1 • शांति शिक्षा भी सम्भव है यदि राजनीतिज्ञ, शांति कार्यकत्ताओं तथा शिक्षा - शास्त्रियों को अवकाश दें । शांति आत्मविश्लेषण का और विशेषकर नैतिक परिप्रेक्ष्य में आत्मविश्लेषण का अवसर देती है । इसका प्रारम्भ समान्य चीजों जेसे सहयोग के लिए तत्पर रहना, दैनिक अनुभवों से सीखना आदि को व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बना लेना चाहिए । शांति शिक्षा की सीमाएं इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पिछले लगभग दो दशकों से शांति शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य हुए हैं । पवित्र उद्देश्यों तथा विशाल प्रयत्नों के बावजूद शांति शिक्षा का कार्यक्रम कई कारणों से बाधित हो रहा है. विशेषकर तीसरी दुनियां के परिप्रेक्ष्य में । शांति शिक्षा के कार्यक्रम केवल कुछ उच्च वर्ग तक तक सीमित रहा है तथा यह मानव समूहों तक पहुंचने असफल रहा है । सम्पूर्ण शांति आन्दोलन बौद्धिक व संगठनात्मक दोनों ही स्तरों पर यूरोप केन्द्रित रहा है । तीसरी दुनियां के व्यक्ति, संस्थाएं तथा संगठन परिधि में ही रहे हैं । परमाणु अस्त्र-शस्त्रों का खतरा तथा तीसरी दुनियां में भूख, कुपोषण, अविकास, सामाजिक अन्याय, आतंकवाद आदि अधिक महत्वपूर्ण रहे हैं । तथा राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इन समस्याओं से जूझने के प्रयत्न ही प्रमुख रहे हैं, शांति शिक्षा की तरफ लोगों व राष्ट्रों का ध्यान ही कम गया है । व्यक्तिगत स्तर पर भी शांति शिक्षा की कुछ समस्याएं हैं । चूंकि शांति शिक्षा अभी तक उच्च वर्ग तक पहुंच पाई है जबकि ऐसे आधुनिकता वाले उच्चवर्गीय व्यक्ति अपने जीवन को भौतिकता की चकाचौंध के कारण खाली एवं अर्थहीन पाते हैं । खण्ड २१, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only ५७ www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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