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लेते हैं।" वर्तमान अशांतिपूर्ण स्थितियों, जिनमें राष्ट्र सुरक्षा हेतु बड़े पैमाने पर शस्त्रीकरण करते हैं, का समाधान वर्तमान पीढ़ी के विचारों में शांतिपूर्ण भविष्य हेतु क्रमशः रूपांतरण है। यह एक आदर्शवादी सिद्धांत है जिसका विश्वास है--सहिष्णुता तथा परस्पर स्वीकृति के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों से पैदा होने वाली मशांति की जगह शांतिपूर्ण भविष्य
का निर्माण किया जा सकता है। (ब) वैज्ञानिक संकल्पना- इस सिद्धांत के अनुसार युद्ध के कारणों तथा शस्त्री
करण के समूचे तंत्र से सम्बन्धी वैज्ञानिक शोध के निष्कर्षों को स्कूल के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना चाहिए तथा यदि सम्भव हो तो पूर्व और पश्चिम दोनों में एक समान पाठ्यक्रम, पाठ्य-पुस्तकें तथा अध्यापन सामग्री
हो। (स) वैचारिक संकल्पना- इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षा समाज परिवर्तन के
प्रारम्भ का ही रास्ता नहीं है अपितु यह सामाजिक प्रक्रिया तथा तंत्र के पुनः प्रस्तुति का एक यंत्र भी है। इस सिद्धांत के अनुसार प्रभावशाली नियंत्रण में पूर्ण सामान्य निशस्त्रीकरण शांति शिक्षा का लक्ष्य नहीं है, अपितु यह शस्त्र नियंत्रण के प्रभावशाली ढंग के बारे में शिक्षा है जो शस्त्रों
की ऊपरी सीमा के लिए स्वीकृति प्रदान करता है । (द) राजनीतिक संकल्पना यह सिद्धांत शासक व शासित के सम्बन्धों पर
निर्भर है जो यह बताता है कि शासितों को अपनी स्थितियों के प्रति सचेत हो जाना चाहिए तथा शोध कार्य तथा शिक्षा की समन्विति के आधार पर शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण करना चाहिए। अर्थात् इस अर्थ में शांति शिक्षा युद्ध के कारणों व अविकास से सम्बन्धी ज्ञान का स्रोत ही नहीं अपितु यह उन स्थितियों जिनमें शिक्षा का निर्णय हुआ है तथा शिक्षा की विषयवस्तु के बीच सम्बन्धों की भी आलोचनात्मक समझ है।
३. शांति-शिक्षा की दुविधाएं
यह दृष्टिकोण दो मूलभूत प्रश्नों से सम्बन्धित है - १. क्या हिंसा के द्वारा शांतिपूर्ण समाज रचना सम्भव है या यह केवल अहिंसक
कार्यों एवं साधनों से ही संभव है ? २. क्या शांतिपूर्ण समाज संरचनात्मक परिवर्तन से सम्भव है या मानवीय
विकास से ?
उपर्युक्त प्रश्नों पर विचार करें तो यह स्पष्ट होगा कि सैनिक शिक्षा या युद्ध एवं हिंसा से शांति स्थापना सम्भव नहीं है। पूंजीवादी व समाजवादी ढांचों के ढह जाने से यह और भी अधिक स्पष्ट हो चुका है । शांति केवल अहिंसक प्रशिक्षण और
तुलसी प्रशा
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