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________________ प्रभाव डालती है। शांति शिक्षा तो हमारे जीवन जीने का रास्ता होना चाहिए"। समाजवादी विचारकों में केवल टॉलस्टाय ने ही शांति शिक्षा के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा। उन्होंने कहा-----“एक व्यक्ति स्वयं में आस्था, नैतिकता, भाईचारे व शांति के लिए ही शिक्षित होना चाहिए।" शांति शिक्षा का जो स्वरूप वर्तमान में है, उसका विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हुआ है । १९४५ के पश्चात् शांति शिक्षा में तीन मुख्य बातें जुड़ी १. अन्तर्राष्ट्रीय समझ विकसित करने के लिए शिक्षा २. राजनैतिक शिक्षा एवं ३. विश्वव्यापी शिक्षा (Global Education) अन्तर्राष्ट्रीय समझ को शांतिशिक्षा में सम्मिलित करने का विचार यूनेस्को के प्रयत्नों से सम्भव हुआ। राजनैतिक शिक्षा का विचार १९६० में कोरिया और वियतनाम के युद्धों के परिणामस्वरूप सामने आया। वैश्विक शिक्षा का विचार प्रो० गाल्टंग एवं फैरी के इस सिद्धांत से विकसित हुआ --- "शांति शक्ति के समान बंटवारे व संसाधनों के समान बंटवारे के बिना कभी भी प्राप्त नहीं की जा सकती।" शांति शिक्षा सम्बन्धी विचार को भारतीय वाङमय के आधार पर इस रूप में रखा जा सकता है-विश्वशांति तभी सम्भव है, जब प्रत्येक व्यक्ति अपने मनमस्तिष्क को इस हेतु तैयार करे और ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब व्यक्ति के शरीर, मन, भाव और भाषा के बीच सही समन्वय हो अर्थात् सम्पूर्ण मानव का निर्माण हो । अन्तर्राष्ट्रीय समझ के लिए शिक्षा यद्यपि इस विचार का उद्गम १९४० से पूर्व ऐसे संगठनों में हो चुका था जो अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय के क्षेत्र में कार्यरत थे । द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् शांति के प्रति आदर्शों को व्यवहार में लाने हेतु नये संगठनों (Friendship among Children and youth एवं American Friends School Affiliation Service) का उदय हुआ। पुराने प्रतिद्वन्द्वी फ्रांस और फैडरल जर्मनी के बीच शांति की शुरूआत के लिए पेस क्रिस्टी (Pase chiristi) ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन संगठनों का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय समझ को विकसित करना था, जिससे विश्व और अधिक शांतिपूर्ण हो सके। १९७४ में यूनेस्को ने अन्तर्राष्ट्रीय समझ, सहयोग और शांति के लिए शिक्षा तथा मानवाधिकार एवं मूलभूत स्वतंत्रता से सम्बन्धी शिक्षा को अनुशंसित किया, जो शांति शिक्षा के प्रति एक बड़ा महत्त्वपूर्ण कदम था। राजनैतिक शिक्षा शांति शिक्षा के विकास का दूसरा कदम शीतयुद्ध, कोरिया संकट एवं विएतनाम खण्ड २१, अंक १ ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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