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________________ मानव सब पदार्थों का मापदण्ड है। (Man is the measure of all things) उन्होंने मनुष्य को ही सर्वोत्कृष्ट माना है। इस विचारधारा से उनकी ज्ञान-मीमांसा भी प्रभावित हुई है। इलियाई मत के अनुसार इन्द्रिय तथा बुद्धि दोनों ही ज्ञान-प्राप्ति के साधन हैं। सत् का ज्ञान बुद्धि से तथा परिणाम का ज्ञान इन्द्रियों द्वारा होता है। इसके विपरीत हेराक्लाइटस के अनुसार परिणाम का ज्ञान बुद्धि द्वारा प्राप्त होता है। डिमाक्रिटस परमाणुओं का ज्ञान बुद्धि से तथा स्थूल वस्तुओं का ज्ञान इन्द्रियों से मानते हैं । प्रोटागोरस बुद्धि और इन्द्रिय के भेद का खण्डन करते हैं। उसके अनुसार मनुष्य सब पदाथों का मापदण्ड है । अतः वही सत्य है जो उसे सत्य प्रतीत होता है । सत्य तो व्यक्ति की संवेदना और अनुभूति तक ही सीमित है । अतः सत्य व्यक्तिगत है । वस्तुगत नहीं है ।२० ज्ञान के क्षेत्र में साफिस्ट लोगों ने एक बड़े ही विवादास्पद सिद्धांत का प्रतिपादन किया है । उनके अनुसार सत्य तो संवेदनाजन्य है। संवेदनाएं व्यक्तिगत होती हैं अतः सत्य आत्मकेन्द्रित है। सुकरात के दर्शन में ज्ञान विचार सबसे महत्त्वपूर्ण विचार है। ज्ञान के क्षेत्र में सुकरात का मत दो ज्ञान का सिद्धांत (Doctrine of two knowledge) कहलाता है। उनके अनुसार ज्ञान के दो रूप हैं - बाह्य और आंतरिक । बाह्य ज्ञान अस्पष्ट, संदिग्ध, इन्द्रियजन्य तथा लोक आधारित है। यह ज्ञान परिवर्तनशील है। आंतरिक ज्ञान तर्कसंगत एवं यथार्थ ज्ञान है । सुकरात ज्ञान को प्रत्ययात्मक जाति रूप मानते हैं। उसकी उत्पत्ति अनुभव से होती है। सुकरात के अनुसार ज्ञान सार्वजनिक तथा सार्वकालिक है । यह व्यक्ति का व्यक्तिगत अनुभव नहीं अपितु सभी व्यक्तियों का सत्य ज्ञान है। सुकरात साफिस्ट लोगों के ज्ञान सिद्धांत का निराकरण करते हैं। महात्मा सुकरात सामान्य ज्ञान को ही यथार्थ ज्ञान मानते हैं। वह प्रत्ययात्मक है।" ज्ञान प्रत्यय या जाति रूप होने से ज्ञान सार्वभौम और सामान्य बन जाता है। उपर्युक्त चर्चा से स्पष्ट होता है कि साफिस्ट वस्तु विशेष को ज्ञान मानते तथा इसके विपरीत सुकरात सामान्य को ही यथार्थ मानते हैं । जैन दर्शन इन दोनों विचारधाराओं का समन्वय करता है। वस्तु का स्वरूप उभयात्मक है और ज्ञान उभयात्मक वस्तु को ग्रहण करता है। इतना अवश्य है जैन परिभाषा में सामान्यग्राही को दर्शन एवं विशेषग्राही को ज्ञान कहा जाता है। प्लेटो का ज्ञान-सिद्धांत भी महत्त्वपूर्ण है। प्लेटो के अन्य दार्शनिक विचार उनके ज्ञान-सिद्धांत पर ही आधारित हैं । प्लेटो के अनुसार बौद्धिक ज्ञान ही यथार्थ है । प्लेटोसुकरात के ज्ञान सम्बन्धी विचार की सम्पुष्टि करते हैं। ज्ञान को प्रत्ययात्मक स्वीकार करके प्लेटो स्पष्टतः ज्ञान के संवेदनात्मक स्वरूप (साफिस्ट मतानुसार) का निराकरण करते हैं। प्रातिभासिक, व्यावहारिक, विश्लेषणात्मक एवं प्रत्ययात्मक ज्ञान को ही वास्तविक एवं सत् मानते हैं। प्लेटो सुकरात के मत को अधिक पुष्ट, परिष्कृत एवं विस्तृत करते हैं । सुकरात के अनुसार प्रत्यय केवल मानसिक है जबकि प्लेटो प्रत्यय को वास्तविक मानते हैं। प्लेटो के अनुसार प्रत्यय केवल मानसिक विचार ही नहीं वरन् वाह्यवस्तु है । २२ सन्त ऑगस्टाइन मध्ययुग के सबसे महत्त्वपूर्ण ईसाई विचारक माने जाने जाते हैं। खण्ड २१, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524583
Book TitleTulsi Prajna 1995 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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