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इसलिए यह 'अणु' भी है एवं 'विभु' भी। यह 'सत्' ध्रौव्यात्मक होने के कारण परम सत्य है एवं कल्याणात्मक होने के कारण शिवस्वरूप है, अहम् है। हेमचन्द्राचार्य ने 'ॐ अर्हम्' मंत्र के रूप में सृष्टि के मूल तत्त्व 'ऋत-सत्य' की व्यापकता एवं शाश्वतता की अभ्यर्थना की है। ऋग्वेद के ४-२१-३ ऋचा में कहा गया है कि 'ऋत' सबका मूल कारण है । छान्दोग्य उपनिषद् में भी कहा गया है कि सृष्टि के आरम्भ में 'सत्' की ही एकमात्र सत्ता थी।
__ मरुत् वायु का देवता है एवं उसकी उत्पत्ति ऋत् से हुई है। यह मरुत् प्राण, अपान, ध्यान, उदान एवं समान रूप से हमारे शरीर में निवास कर उसे अस्तित्व एवं गति प्रदान करता है । प्राण रूप में यह सब जीवों में व्याप्त है।
ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के २३ वें सूत्र में ऋत से सारे चराचर को आवृत कहा गया है । ऋत वृद्धि का कारण है एवं प्रकाश का पालक तथा जनक है :
"ऋतेन यावृत्तावृधावतस्य ज्योतिषस्पती" आगे कहा गया है "ता मित्रावरुणा हुवे" उन वृद्धियों एवं प्रकाश के कर्ता धर्ता मित्र (सूर्य) एवं वरुण का आह्वान करता हूं। इस प्रकार ऋत अग्नि एवं जल तत्व है जिससे यह सारा संसार व्याप्त है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि ऋत व्यवस्था वाचक शब्द है तो सत्य उस व्यवस्था की सत्य सत्ता का निरूपण है । ये दोनों शब्द अलग अलग है एवं किसी भी प्रकार से पर्यायवाची नहीं हैं । सृष्टि के मूल में जो अविनाशी सत्ता है वह ऋत के कारण है ऋग्वेद के अनुसार ऋत ही सृष्टि की उत्पत्ति का कारण है। वैदिक साहित्य में ऋत की विशिष्ट सत्ता दिखाई देती है । वेदकाल के पश्चात् 'ऋत' का प्रयोग भौतिक सत्ता के लिए होने लगा और बाद में तो ऋत में आचार सम्बन्धी नियमों का भी समावेश हो गया। बाद में देवताओं से प्रार्थना की जाती थी कि वे प्राणी मात्र को 'ऋत' के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें । पारसियों के धार्मिक ग्रंथ अवेस्ता में प्रयुक्त अंश शब्द वैदिक ऋत के समान ही हैं। उनका यह अंश प्राचीन शब्द 'अर्त' का ही रूप है जो १४०० ई० पू० में प्राप्त "तेलअल-अमना" के शिलालेख में पाया गया है।
विश्व में जो सुव्यवस्था एवं सौन्दर्य के दर्शन होते हैं वे मात्र 'ऋत' के कारण हैं । ऋत गत्यात्मक है जिससे संसार की अशांति, लड़ाइयां क्रमानुसार अपने आप समाप्त हो जाती हैं। विषमता, क्रूरता, नैराश्य सत् नहीं है वे ऋत की गत्यात्मकता के कारण कुछ की वस्तु बन जायेंगे। ऋत मानवी सृष्टि में आशावादिता का सन्देश देता है एवं मनुष्यों को आपत्तियों को झेलने की क्षमता प्रदान करता है और यही सुखदुःख जीवन का शाश्वत सत्य है । वैदिक मंत्र 'ऋतं च सत्यं च' संसार की सुव्यवस्था के लिए सत्य सन्देश है। यह मंत्र नहीं मानवी जिजीविषा का जीवन्त दस्तावेज है।
-८० शांतिनगर, सिरोही
खण्ड २१, अंक १
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