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सकता है ? गांधी की दृष्टि में वह साधन है हमारी नैतिकता और नैतिकता का शिरोमणि प्रयत्न है अहिंसा । जीवन में जितने भी उपयोगी मूल्य है, कोई भी निरपेक्ष नहीं है । वे विभिन्न अपेक्षाभों से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। अहिंसा अपने आप में वह मूल्य है जो ईश्वर, सत्य, आत्मानुभूति आदि मूल्यों की प्राप्ति का साधन है। गांधी का मानना है कि जब हम आध्यात्मिक एकता को प्राप्त करना अपने जीवन का चरम लक्ष्य मानते हैं तो इसकी सिद्धि हिंसक साधनों से नहीं हो सकती है। पवित्र साध्य के लिए पवित्र साधन की भी आवश्यकता पड़ती है। इसलिए चरम आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति के लिए हमें सृष्टि में हर प्राणी से प्रेम करना है। अपने पड़ोसियों की सेवा करनी है । दरिद्रनारायण की सेवा करना ही ईश्वर की प्राप्ति का सच्चा मार्ग है । इसलिए गांधी ने अपने धार्मिक मूल्यों में समाज सेवा के मूल्यों को अवियोज्य रूप से जोड़ दिया है । शिक्षा का उद्देश्य है समाज सेवा में मूल्यों को हर शिक्षार्थियों में प्रवेश कराना।
यहां यह कहने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है कि गांधी की अहिंसा भी सत्य की भांति ही एक जटिल मूल्य है जिसके अर्न्तगत अनेक प्रकार के मूल्य आपस में सुसंगठित हैं। गांधी की अहिंसा केवल सत्य, प्रेम, करुणा, मंत्री और आध्यात्मिक मूल्यों का ही नाम नहीं है बल्कि यह अपने में समता, स्वतंत्रता, भातृत्व, सर्वधर्म समादर, अशोषण, सर्वोदय, सहयोग, सद्भाव, शरीर श्रम, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, स्वदेशी इत्यादि सामाजिक मूल्यों को भी अपने में समाविष्ट करती है। अतः गांधी के धार्मिक विचार में नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक सभी प्रकार के मानवीय मूल्यों का समावेश हो जाता है जिनका विकास करना हमारी शिक्षा का उद्देश्य है। अध्यात्म एवं विज्ञान का समन्वय
गांधी भी शिक्षा में अध्यात्म एवं विज्ञान आदर्शवाद और प्रकृतिवाद दोनों का मणिकांचन सयोग है । वे शिक्षा के द्वारा एक ओर शिक्षार्थी में वैज्ञानिक प्रायोगिक और सहज उपलब्ध प्रवृत्तियों का विकास करना चाहते हैं तो दूसरी ओर शिक्षा के द्वारा आत्मशक्ति, प्रेमशक्ति, नैतिक शक्ति और सत्यशक्ति का भी विकास करना चाहते हैं । जब तक मानव में इन दोनों प्रकार की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक वृत्तियों का विकास नहीं होता तब तक उसका समग्र विकास सम्भव नहीं है और गांधी की दृष्टि में शिक्षा का लक्ष्य समग्र मानव का निर्माण करना है। अतः अध्यात्म और विज्ञान दोनों प्रकार के मूल्यों का विकास करना मानवीय दृष्टि से आवश्यक है। डॉ. रामजी सिंह का कहना बिल्कुल सत्य है की गांधी कि शिक्षा की अवधारणा अखण्ड मानव के अध्ययन की अवधारणा है जो अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय है। शिक्षा और शांति
गांधी के शिक्षा सिद्धांत में शांति के मूल्यों के विकास पर भी अधिक बल दिया गया है क्योंकि यदि शिक्षा का लक्ष्य सर्वोदय समाज का निर्माण करना है तो शांति शिक्षा के बिना यह सम्भव नहीं है। हमें शिक्षा के द्वारा युद्ध के दुष्परिणामों को समाज
खण्ड २०, अंक ४
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