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________________ गांधीजी की शिक्षा में मूल्यपरक तत्त्व कुमुद सिन्हा शिक्षा मानव के लिये है । मानव क्या है ? इसके लक्ष्य क्या है ? इन प्रश्नों के उत्तर अलग-अलग ढंग से शिक्षा दार्शनिकों के द्वारा दिए गये हैं । मानव का जो स्वरूप बनता है और उसके जीवन के जो लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं । इन्हीं के अनुरूप उनके लिए मूल्यों का निर्धारण किया जाता है। यदि मानव का स्वरूप पूर्णतः भौतिक मान लिया जाता है तो स्वभावतः उसके जीवन का लक्ष्य भौतिक सुख-समृद्धि को प्राप्त करना होता है । अतः वह भौतिक विकास तथा उसके विकास के साधन को ही मूल्य समझता है, जो मानव को मूलतः आत्मा, ईश्वर या ब्रह्म तत्त्व मानते हैं, वे आत्मानुभूति ईश्वरानुभूति या ब्रह्मानुभूति ही जीवन का परम ध्येय मानते हैं, उनके लिए विश्व की सारी भौतिक चीजे निस्सार मालूम पड़ती हैं। वे केवल मोक्ष और मोक्ष साधन (धर्म तथा नैतिकता) को जीवन का वास्तविक मूल्य समझते हैं। परन्तु जो मानव को भूत और चैतन्य का अखण्ड रूप मानते हैं, उनके लिए अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष संक्षेप में विज्ञान और अध्यात्म सभी जीवन के मूल्य माने जाते हैं जिन्हें सिद्ध कर मनुष्य अपने आप में संतोष का अनुभव करता है। इस प्रकार मूल्य क्या है और जिन मूल्यों की प्राप्ति का हमें प्रयास करना चाहिए ये सब अलग-अलग सिद्धांतों पर निर्भर हैं तथा देश, काल और मानव के ज्ञान के विकास के साथ-साथ परिवर्तित होते रहते हैं। __शिक्षा मूल्यों के साथ अवियोज्य रूप से जुड़ी होती हैं। क्योंकि जिसे हम मूल्य समझते हैं, शिक्षा के द्वारा उसे हम व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सिद्ध करते हैं। शिक्षा इन मूल्यों को जीवन में साकार करने का साधन है । अतः कोई भी शिक्षा मूल्य विहीन नहीं हो सकती। फिर शिक्षा में मूल्यपरकता या मूल्यपरक शिक्षा की बात अपने आप में एक पुनरुक्तिमात्र मालूम पड़ती हैं। परन्तु जब शिक्षा विकृतियों के कारण निरुद्देश्य बन जाती है अथवा यह समाज की वांछित आवश्यकताओं की पूर्ति में असफल हो जाती है तब हमें आवश्यकता होती है कि इसमें उन तत्त्वों का प्रवेश कराया जाए जिनसे वांछित आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकें । अतः मूल्यपरक शिक्षा और गांधी की शिक्षा में मूल्यपरक तत्त्व से आशय शिक्षा में उन मूल्यों के प्रवेश से है जिनकी वर्तमान समाज में आवश्यकता महसूस हो रही है । गांधीवादी शिक्षा की पृष्ठभूमि : गांधीजी उस काल में पैदा हुए जब भारतीय समाज मूल्यों के संकट से गुजर रहा खंड २०, अंक ४ ३३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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