SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कि शतचि, मध्यम, क्षुद्र और महासूक्त कर्ता मण्डलों के ऋषि हैं। शांचन मधुछन्द आदि अगस्त्य पर्यन्त १६ ऋषि हैं जिन्होंने सौ से अधिक ऋचाएं लिखीं। दश से कम ऋचाएं लिखने वाले ऋषि क्षुद्र और दश से अधिक परन्तु सौ से कम ऋचाएं लिखने वाले महासूक्त कहे गए । शतचिन ऋषि प्रथम मण्डल के कर्ता हैं और क्षुद्र तथा महासूक्त ऋषि दशम मण्डल के कर्ता हैं। इसके अलावा दूसरे मण्डल के कर्ता गृत्समद, तीसरे के विश्वामित्र, चौथे के वामदेव, पांचवें के अत्रि, छठे के भरद्वाज, सातवें के वसिष्ठ, आठवें के प्रगाथ और नौवें के पावमान्य ऋषि हैं जो मध्यमा कहे गए हैं। इस प्रकार मंडल-दो से मंडल-नौ तक ऋषि-परिवारों की कृतियां हैं और मण्डल-एक तथा मण्डल-दश अनेकों ऋषियों की अथवा ऋषि-परिवारों की कृतियां दाशतायी संहिता सम्बन्धी एक निर्वचन या एक के निरूक्त (२१.२.१६) में भी मिलता है - 'तदेतदभोश्च बहुवचनेन चमसस्य च संस्तवेत बहूनि दशतयीषु सूक्तानि भवन्ति ।' - इससे ऐसा लगता है कि ऋचाओं के अनेकों संग्रह हुए और उनमें शाकलसंहिता प्रामाणिक मानी गई। ऋक् प्रातिशाख्य में ऋग्वेद संहिताओं के पांच संग्रहकर्ता-ऋषियों से सम्बन्धित निम्न उल्लेख मिलता है "ऋचां समूह ऋग्वेदस्तमभ्यस्य प्रयत्नतः। पठित: शाकलेनादौ चतुभिस्तदनन्तरम ॥ शांखाश्वालायनो चैव माण्डूक्ये वाष्कलस्तथा। बह वृचा ऋषभः सर्वे पंचते एकवेदिनः ॥" वर्तमान में शाकल संहिता के अतिरिक्त बाष्कल और शांखायन संहिता के कुछ अंश मिलते हैं। बाष्कल संहिता को पं० दामोदर सातवलेकर अष्टक और वर्गों में विभक्त संहिता मानते हैं। शांखायन संहिता में बाल खिल्य मूल संहिता के भाग हैं। अनुवाकानुक्रमणी में आचार्य शौनक ने खेलकों का उल्लेख इस प्रकार किया "सहस्रमेतत् सूक्तानां निश्चितं खैलकेविना' अर्थात् उसके मत में ऋग्वेद के १०१७ सूक्तों में १७ सूक्त खेलकमंत्रों के हैं। आचार्य कात्यायन ने बालखिल्य सूक्तों की संख्या ११ और मंत्र संख्या ८० लिखी है। पं० सातवलेकर के संस्करण में ३६ खिल सूत्र हैं। मैक्स मूलर ने ३२ और आफन्त ने २७ सूक्त प्रकाशित किए हैं। खेलकों में पुरोरूक्, निविद, प्रेष, महानाम्नी और कुताप मंत्रों को भी गिना जाता है जिनमें निविदों की ११ और कुतांप ऋचाओं की संख्या १२ है। कश्यप का आर्ष-शीर्षक एक और हजार सूक्तों की संहिता रही होगी जिसका ३२८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy