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________________ ऋग्वेद की मंत्र संख्या बिपरमेश्वर सोलंकी ऋग्वेद संहिता विश्व वाङमय का प्राचीनतम ग्रन्थ है और यह ज्ञान का अक्षय भण्डार है । यह कहना कठिन है कि इसका वर्तमान स्वरूप कब बना? किंतु महाभारत युद्ध से पूर्व लिखे गए शतपथ ब्राह्मण (१४.४.२.२३) में प्रजापति सृष्ट ऋचाओं की संख्या १२००० (बारह हजार) बृहती छन्द-परिमाण बताई गई है। इस उल्लेख से ऋग्वेद का ग्रन्थान १२०००-३६-४,३२००० अक्षर तुल्य होता है।' ऋग्वेद की एक शाखा में ग्यारह श्लोकों का एक "छन्द संख्या परिशिष्ट" प्राप्त होती है। उसके अनुसार ऋग्वेद में गायत्री छन्द-२४५१, उष्णिक-३४१, अनुष्टुभ्८५५, बृहती-१८१, पंक्ति-३१२, त्रिष्टुभ्-४२५३, जगती-१३४८, अतिजगती-१७, शक्वरी-१९, अतिशक्वरी-९, अष्टि-६, अत्यष्टि-८४, धृति-२, अतिधति-१, एकपदा६, द्विपदा-१७, बाहत प्रगाथ-३८८, काकुभ प्रगाथ-११० तथा बाहत प्रगाथ-२ हैं जिससे उसकी कुल छन्द-संख्या १०४०२ होती है। चरण व्यूह के निम्न श्लोक में, ऋग्वेद में कुल १०५८० ऋचाएं और एक पाद बताया गया है--- ऋचां दश सहस्राणि ऋचां पंचशतानि च । ऋचामशीतिः पादश्च तत्पारायणमुच्यते ॥ अर्थात् ऋग्वेद में कुल १०५८० ऋचाएं और एक पाद हैं जिनकी अक्षर-संख्या आचार्य शौनक के अनुसार ४,३२००० अक्षर परिमाण होती है। इसके विपरीत ऐतरेप ब्राह्मण और आरण्यक में ऋग्वेद का मान बताते हुए कहा गया है "बह वृचानां शाकलीया दाशतायी संहिता" कि शाकलीय संहिता में बह वृचों के दशमण्डल हैं (दशमण्डलानि अवयवा अस्या इति दशतायी-संख्याया अवयवे तपम् । डीप् ।) इन दशमण्डलों में ८५ अनुवाक और १०१७ सूक्त हैं। 'बहद्देवता' के अनुसार सम्पूर्ण ऋषि वाक्य को सूक्त कहते हैं और बहुत से सूक्तों के संग्रह को मण्डल । सर्वानुक्रमणी में आचार्य शौनक ने कहा है—'य आंगिरसः शौनको होत्रो भूत्वा भार्गवः शौनकोऽभवत्स गृत्समदो द्वितीय मण्डलमपश्यदिति'—कि गृत्समद ऋषि ने दूसरे मण्डल के सूक्तों का संग्रह किया। आश्वलायन गृह्यसूत्र में दश मण्डलों के ऋषियों की पहचान दी गई है 'शचिनो मध्यमा गृत्समदो विश्वामित्रो वामदेवोऽत्रिभरद्वाजो वसिष्ठः प्रगाथाः पावमान्याः क्षुद्रसूक्ता महासूक्ता' खण्ड २०, अंक ४ ३२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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