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________________ की दृष्टि से आकलन किया गया है । यह एक प्रकार से कोश की शैली में ग्रथित आगम है, जो स्मरण करने की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है। जैन आगम साहित्य में तीन प्रकार के स्थविर बताए गए हैं। उनमें श्रुत स्थविर के लिए 'ठाणं-समवायधरे' यह विशेषण आया है । इस विशेषण से यह स्पष्ट है कि इस आगम का कितना अधिक महत्त्व रहा है । आचार्य अभयदेव ने स्थानांग की वाचना कब होनी चाहिए? इस संबन्ध में लिखा है कि दीक्षा-पर्याय की दृष्टि से आठवें वर्ष में स्थानांग की वाचना देनी चाहिए । यदि आठवें वर्ष से पहले कोई वाचना देता है तो उसे आज्ञा भंग आदि दोष लगते हैं। व्यवहार सूत्र के अनुसार स्थानांग और समवायांग के ज्ञाता को ही आचार्य, उपाध्याय और गणावच्छेदक पद देने का विधान है। इससे भी अंग का महत्त्व स्पष्ट है। समवायांग और नन्दीसूत्र में स्थानांग का परिचय दिया गया है। समवायांग के अनुसार स्थानांग की विषयसूची इस प्रकार है - (१) स्व सिद्धांत, पर सिद्धांत और स्व-पर सिद्धांत (२) जीव, अजीव और जीवाजीव का कथन (३) लोक, अलोक और लोकालोक का कथन (४) द्रव्य के गुण और विभिन्न क्षेत्रकालवर्ती पर्यायों पर चिन्तन (५) पर्वत, पानी, समुद्र, देव, देवों के प्रकार, पुरुषों के विभिन्न प्रकार, स्वरूप, गोत्र, नदियों, निधियों और ज्योतिष्क देवों की विविध गतियों का वर्णन और (६) एक प्रकार, दो प्रकार, यावत दस प्रकार के लोक में रहनेवाले जीवों और पुद्गलों का निरुपण। ___ नन्दी सूत्र में स्थानांग की विषयसूची प्रारम्भ में तीन नम्बर तक समवायांग की तरह किंतु व्युत्क्रम से है । चतुर्थ और पांचवें नम्बर की सूची बहुत ही संक्षेप में है। जैसे-टङ्क, कूट, शैल, शिखरी, प्राम्भार, गुफा, आकर, डह और सरिताओं का कथन । छठे नम्बर में नंदी सूत्र के अनुकूल है। . समवायांग व नन्दीसूत्र के अनुसार स्थानांग की वाचनाएं संख्येय हैं, उसमें संख्यात श्लोक हैं, संख्यात संग्रहणियां हैं। उसमें एक श्रुतस्कन्ध है, दस अध्ययन हैं । इक्कीस उद्देशनकाल हैं । बहत्तर हजार पद हैं । संख्यात अक्षर हैं यावत् जिनप्रज्ञप्त पदार्थों का वर्णन है। इस आगम में दश अध्ययनों का एक ही श्रुतस्कंध है। द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ अध्ययन के चार-चार उद्देशक हैं। पंचम अध्ययन के तीन उद्देशक हैं । शेष छह अध्ययनों में एक-एक उद्देशक है। कुल इक्कीस उद्देशक हैं । स्थानांग की पद संख्या बहत्तर हजार कही गई है किन्तु वर्तमान में बहत्तर हजार पद नहीं मिलते हैं । आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित स्थानांग की सटीक प्रति में सात सौ तिरासी (७८३) सूत्र हैं और पाठ ३७७० श्लोक परिमाण है । __ स्थानांग सूत्र में चारों ही अनुयोगों का समावेश है । मुनिश्री कन्हैयालालजी 'कमल' ने लिखा है कि स्थानांग में द्रव्यानुयोग की दृष्टि से ४२६ सूत्र, चरणानुयोग की दृष्टि से २१४ सूत्र गणितानुयोग की दृष्टि से १०८ सूत्र और धर्मकथानुयोग की दृष्टि से ५१ सूत्र हैं। उनमें कितने ही सूत्रों में एक-दूसरे अनुयोग संबद्ध हैं । अतः अनुयोग वर्गीकरण की दृष्टि से सूत्रों की संख्या में १७ सूत्रों की अभिवृद्धि हुई है। २६२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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