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'संबोधि' में प्रयुक्त छन्द
विश्व का अधिकांश' साहित्य छन्दोबद्ध है। सर्व प्राचीन एवं संसार का प्रथम ग्रन्थ ऋग्वेद छन्दोमय है । संस्कृत-साहित्य का अधिकांश मर्म भाग भी किसी-न-किसी छन्द में ही निबद्ध है और आधुनिक काल में भी यह परम्परा अविच्छिन्न है । इस लघु लेख में आचार्य महाप्रज्ञ के संबोधि महाकाव्य में प्रयुक्त छन्दों का विवेचन किया जा रहा है ।
छन्द शब्द की व्युत्पत्ति
छन्द शब्द की व्युत्पत्ति दो प्रकार से की गयी है - आवरकत्व पक्ष और आह्लादकत्व पक्ष में ।
चुरादि छदि संवरणे धातु से छन्द शब्द आच्छादन ।' यह पापों से मनुष्यों को बचाता है । आच्छादित रहता है । इसलिए छादकत्व धर्म होने के मान्यता व्याकरण आचार्यों की है। '
समणी स्थितप्रज्ञा
उसका आह्लादकत्व
भ्वादिगणी 'चदि आह्लादने दीप्तौ च' धातु से 'चन्देरादेश्छः " औणादिक सूत्र से अमुन् प्रत्यय और चकार के स्थान पर छकार करने पर छदि शब्द निष्पन्न होता है । जो आह्लादित करे, चित्तवृत्तियों को विकसित करे, दीप्त करे उसे छन्द कहते हैं । आह्लादन अर्क में अनेक व्युत्पत्तियां मिलनी हैं
चन्दति आह्लादं करोति दीव्यते वा श्रव्यतया इति छन्दः । छन्दयति आह्लादयते इति छन्द: । चन्दनादाह्लादनात् छन्दांसि वर्णमात्रा नियमितानि वृत्तानि तेषाम् छदयति मनोगतान् भावान् इति छन्द: । जो आह्लादित करे अर्थात् श्रव्य के माध्यम से चित्त
को विकसित करे वह छन्द है ।
खण्ड २० अंक ४
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निष्पन्न होता है जिसका अर्थ है मन्त्रतेज छन्द: स्वरूप कवच से कारण उसे छन्द कहते हैं । यही
लघु-गुरुओं के नियत अक्षर में और चार चरणों में विभक्त जो विशिष्ट क्रम है उसे छन्द कहते हैं | हृदयस्थ भावनाओं की लयात्मक किंवा संगीतात्मक अभिव्यक्ति छन्द है ।
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रागात्मिका वृत्तिवाली कृतियां छन्दोबद्ध होती हैं । यही कारण है कि विश्व का अधिकतम साहित्य छन्दाश्रित मिलता है । काव्यांगभूत रस, अलंकार, गुणादि में छन्द का महत्त्वपूर्ण स्थान है । छन्दों या वृत्तों जैसा माधुर्य, सौष्ठव एवं सहजग्राह्यता
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