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साम्प्रदायिक आग्रह, धार्मिक असहिष्णुता और साम्प्रदायिक विद्वेष को जन्म देने वाले कुछ मुख्य कारण निम्न माने जा सकते हैं :
१. ईर्ष्या के कारण,
२. किसी व्यक्ति की प्रसिद्धि की लिप्सा के कारण,
३. किसी वैचारिक मतभेद के कारण,
४. किसी आचार सम्बन्धी नियमोपनियम में अन्तर के कारण,
५. किसी व्यक्ति या पूर्व सम्प्रदाय के द्वारा अपमान या खींचतान होने के
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कारण ।
अनेकांत विचार दृष्टि विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों की समाप्ति के द्वारा एकता का प्रयास नहीं करती है, क्योंकि वैयक्तिक रुचि भेद तथा देशकालगत भिन्नताओं के होते हुए विभिन्न धर्म एवं विचार सम्प्रदायों की उपस्थिति अपरिहार्य है । एक धर्म या एक सम्प्रदाय का नारा असंगत एवं अव्यवाहारिक ही नहीं अपितु अशांति और संघर्ष का कारण भी है । अनेकांत विभिन्न धर्म सम्प्रदायों की समाप्ति का प्रयास न होकर उन्हें एक व्यापक पूर्णता में सुसंगत रूप से संयोजित करने का प्रयास हो सकता हैं, लेकिन इसके लिए आवश्यकता है धार्मिक सहिष्णुता और सर्व धर्म समभाव की । राजनैतिक क्षेत्र में अनेकांत दृष्टिकोण का प्रयोग
आज का राजनैतिक जगत् भी वैचारिक-संकुलता से परिपूर्ण है। पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, फासिस्टवाद आदि अनेक राजनैतिक विचार धाराएं तथा राजतंत्र प्रजातंत्र, कुलीनतंत्र, अधिनायकतंत्र आदि अनेकानेक शासन प्रणालियां वर्तमान में प्रचलित हैं । मात्र उतना ही नहीं, उनमें से प्रत्येक एक-दूसरे की समाप्ति के लिए प्रयत्नशील है । विश्व के राष्ट्र खेमों में बंटे हुए हैं और प्रत्येक खेमे का अग्रणी राष्ट्र अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने हेतु दूसरे के विनाश में तत्पर है ।
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आज के राजनैतिक जीवन में अनेकांत के दो व्यावहारिक फलित वैचारिक सहिष्णुता और समन्वय अत्यन्त उपादेय है। मानव जाति ने राजनैतिक जगत् में राजतंत्र से प्रजातंत्र तक की जो लम्बी यात्रा की है उनकी सार्थकता अनेकांत दृष्टि को अपनाने में ही है । विरोधी पक्ष के द्वारा की जाने वाली आलोचना के प्रति सहिष्णु होकर उसके द्वारा अपने दोषों को समझना और उन्हें दूर करने का प्रयास करना, आज के राजनैतिक जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विपक्ष की धारणा में भी सत्यता हो सकती है और विरोधी दल की उपस्थिति में अपने दोषों के निराकरण का अच्छा अवसर मिलता है, इस विचार दृष्टि और सहिष्णुता तथा सह-अस्तित्व की भावना में ही प्रजातंत्र का उज्ज्वल भविष्य है ।
राजनैतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातंत्र वस्तुतः राजनैतिक अनेकांतवाद है । दार्शनिक क्षेत्र में जहां भारत अनेकांतवाद का सर्जक है, वही वह राजनैतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातंत्र का समर्थक है, अतः आज अनेकांत का व्यावहारिक क्षेत्र में उपयोग करने का दायित्व भारतीय राजनीतिज्ञों पर है ।
निष्कर्ष
अनेकांत दर्शन का सैद्धान्तिक पक्ष तथा वैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित तथ्य
तुलसी प्रज्ञा
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