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________________ स्पर्श--नवनीत मक्खन से अनन्तगुण सुकुमार । पद्म वर्ण- हल्दी के समान पीला। रन-मधु से अनन्तगुण मिष्ट । शुक्ल वर्ण -- शंख के समान सफेद । रस-मिसरी से अनन्त गुण मिष्ट । विशेष - तीनों की गन्ध व स्पर्श लेश्याएं एक समान हैं।" तीन पाप लेश्याओं तथा तीन पुण्य लेश्याओं को आचार्य महाप्रज्ञ ने इस प्रकार वर्णित किया है। तीव्रारम्भ-परिणतः, क्षुद्रः साहसिकोऽयतिः, पञ्चास्रव-प्रवृत्तश्च , कृष्णलेश्यो भवेत् पुमान, १६:२३ इर्ष्यालुद्वेषमापन्नो, गृद्धिमान रसलोलुपः, अह्रीकश्च प्रमत्तश्च, नीललेश्यो भवेत् पुमान, १६।२४ वक्रो वसमाचारो, मित्थ्या दृष्टिश्च भत्सरी, औपधिको दुष्टवादी, कापोतीमाश्रितो भवेत्, १६।२५ विनीतोऽचपलोऽमायी, दान्तश्चावद्यभीरुकठ, प्रियधर्मा दृढ़धर्मा, तेजसीमाश्रितो भवेत् । १६।२६ तनु तम क्रोध-मान-माया-लोभो जितेन्द्रियः, प्रशान्तचित्तोदान्तात्मा, पद्मलेश्यो भवेत् पुमान । १६।२७ आर्तरौद्र वर्जयित्वा, धर्म्य शुक्ले च साधयेत्, उपशान्तः सदागुप्त: शुक्ललेश्यो भवेत् पुमान । १६।२८१२ वैज्ञानिक परीक्षणों के द्वारा रंगों की प्रकृति पर काफी विचार किया गया है । नाम प्रकृति नाम प्रकृति लाल गर्म , हल्का गुलाबी गर्म नारंगी गर्म , बादामी गर्म लाल नारंगी बहुत गर्म , हरा गर्म पीला गर्म किन्तु लाल नारंगी से कम, नीला न अधिक गर्म, न अधिक ठण्डा गहरा नीला या आसमानी - ठण्डा, शुभ (बन फशी) न गर्म न ठण्डा इन रंगों में नारंगी लाल रंग के परिवार का रंग है । बैंगनी और जामुनी रंग के परिवार के हैं। लाल रंग, स्नायुमण्डल को स्फूति देता है । नीला रंग, स्नायविक दुर्बलता, धातुक्षय, स्वप्न-दोष में लाभ पहुंचाता और हृदय तथा मस्तिष्क को शक्ति देता है । पीला रंग, मस्तिष्क की शक्ति का विकास कब्ज, यकृत और प्लीहा के रोगों को शान्त करने में उपयोगी है। हरा रंग ज्ञान तन्तुओं और स्नायु-मण्डल को बल देने में, वीर्य रोग में उपयोगी है। गहरा नीला रंग गर्मी की अधिकता से होने वाले आमाशय सम्बन्धी खण्ड २०, अंक ४ २९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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