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जैन दर्शन में लेश्या - एक विवेचन प्रद्युम्न शाह सिंह
'कषायानुरञ्जिता कायवाङ, मनोयोप्रवृतिर्लेश्या" कषाय से अनुरंजित मन-वचनकाय की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं । लेश्या का सामान्य लक्षण है :- 'लिप्पइ अप्पीकीरइ एयाए णियय पुण्ण पावं च । जीवो त्ति होइ लेसा लेसागुण जाणयक्खाया। जह dear कुड्डी लिप्पइ लेवेण आमपिट्टेण । तह परिणामो लिप्पइ सुहासुह यत्तिलेव्वेण ।” जिसके द्वारा जीव पुण्य-पाप से अपने को लिप्त करता है, उनके आधीन करता है, उसको लेश्या कहते हैं । जिस प्रकार आमपिष्ट से मिश्रित गेरु-मिट्टी के लेप द्वारा दीवाल लीपी या रंगी जाती है, उसी प्रकार शुभ और अशुभ भावरूप लेप के द्वारा जो आत्मा का परिणाम लिप्त किया जाता है उसको लेश्या कहते हैं । 'लिम्पतीति लेश्या " जो लिम्पन करती है उसे लेश्या कहते हैं अर्थात् जो कर्मों से आत्मा को लिप्त करती है वह लेश्या है | 'अथवात्मप्रवृत्तिसंश्लेषण कारी लेश्या ।' प्रवृत्ति-शब्दस्य कर्मपर्यायत्वात् " अथवा जो आत्मा और कर्म का सम्बन्ध कराने वाली है उसको लेश्या कहते हैं। यहां लेश्या 'प्रवृत्ति' शब्द कर्म का पर्यायवाची है । जो जीव व कर्म का सम्बन्ध कराती हैं वह लेश्या है | अभिप्राय यह है कि मिथ्यात्व असंयम और कषाय के योग- ये सब लेश्या हैं ।
लेश्या का तात्पर्य पुद्गल द्रव्य के संसर्ग से उत्पन्न होने वाला जीव का अध्यवसाय परिणाम, विचार से है । आत्मा चेतन है, जड़ स्वरूप से सर्वथा पृथक् है, फिर भी संसार दशा में इसका जड़ द्रव्य-पुद्गल के साथ गहरा संसर्ग रखता है, इसीलिए जड़ द्रव्य जन्य परिणामों का जीव पर असर हुए बिना नहीं रहता । जिन पुद्गलों से जीव के विचार प्रभावित होते हैं, वे द्रव्य-लेश्या कहलाते हैं । कषाय से अनुरंजित जीव की मन, वचन, काया की प्रवृत्ति भाव लेश्या कहलाती है ।
जैनागमों में शुक्ल - कृष्णादि छह रंगों द्वारा लेश्या का विवेचन किया गया है । इनमें से तीन लेश्याएं शुभ व तीन अशुभ होती हैं। राग व कषाय का अभाव हो जाने से मुक्त जीवों को लेश्या नहीं होती । शरीर के रंग को द्रव्य - लेश्या कहते हैं । देव व नारकियों में द्रव्य व भाव- लेश्या समान होती है, अन्य जीवों में इसकी समानता का नियम नहीं है । द्रव्य - लेश्या आयु पर्यन्त एक सी रहती है पर भाव- लेश्या जीवों के परिणामों के अनुसार बराबर बदलती रहती है ।
द्रव्य लेश्याएं पौद्गलिक हैं, इसलिए इनमें वर्ण - रस, गंध-रस और स्पर्श होते हैं; लेश्याओं का नामकरण द्रव्य - लेश्याओं के रंग के आधार पर हुआ है; जैसे कृष्ण लेश्या,
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खंड २०० अंक ४
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