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शुभाशुभफलान्यत्र, कर्मणां बन्धनानि च । छित्त्वा मोक्षमवाप्नोति, अप्रमत्तो हि संयति: ॥२
संदर्भ १. अभिज्ञान शाकुन्तल, १.२२
२७. संबोधि, २.२० २. एम विल्किसन, निउ भोआयसेज, २८. धम्मपद, सम्पादक विनोबा, पृ० निउयार्क, १९२७ पृ० १४ ।। (M. wilkinson : New voices, २९. श्रीमद्भगवद् गीता, २.१४ Newyark, page 14)
३०. संबोधि, ५.२ ३. अश्रुवीणा-श्लोक सं०४
३१. यजुर्वेद, १२.३२ ४. अतुलातुला, अप्पनिवेदणं, ८ ३२. तत्रैव, १६.३ ५. " पृ० ४, श्लोक संख्या ६ ३३. महाभारत आदि पर्व, ११.१३ ६. अश्रुवीणा, ३
३४. भक्त परिज्ञा, ९१ ७. संबोधि, ७.७-८
३५. आचारांग, १.५.५.५ ८. अतुलातुला, पृ० १९०
३६. नन्दीसूत्र चूर्णि, ५.३८ ९. अश्रुवीणा, १
३७. संबोधि, ७.३६ १०. नारदभक्ति सूत्र, गीताप्रेस, सूत्र ३८ तत्रैव, ७.३३ सं० १८
३९. संबोधि. ५.२ ११. नारदभक्ति सूत्र, गीता प्रेस पृ. २४ । ४०. " ५.७ पर उद्धृत
५.८ १२. सर्वार्थसिद्धि, ६.२४.३३९.४ १३. अश्रुवीणा, १३
४३. " ५.२३ १४. भक्तामर स्तोत्र, १
४४. " ५.१६ १५. तत्रैव, १२
५.१८ १६. अतुलातुला, आचार्य स्तुति, पृ० २०६,
श्लोक सं०८ १७. अतुलातुला, पृ० २०८, श्लोक १२ " ७.५ १८. रत्नपाल चरितम्, ३.७
४९. " ७.६ १९. " " ३.९
५०. " ७.७ २०. संबोधि, १५.३
५१. अथर्ववेद, १२.१.२२ २१. रत्नपाल चरित, १.३१
५२. ऐतरेय ब्राह्मण, ३३.३ २२. आचारांग, १.२.५
५३. वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड, २३. दशवकालिक, ९.३.११
२३.१८ २४. सूत्रकृतांग, १.१२.१५
५४. परमात्म प्रकाश, २.३ २५. रत्नपाल चरित, १.३१
५५. संबोधि, ३.६ २६. तत्रव, १.३३
५६. तत्रैव, ३.१०
५.११
७.२
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तुलसी प्रज्ञा
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