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________________ भक्ति और आराध्य का स्वरूप समणी प्रसन्न प्रज्ञा जो आराधना करने योग्य हो वह आराध्य कहलाता है। हर व्यक्ति का अपनाअपना आराध्य होता है। भगवान, तीर्थकर, उत्तमपुरुष, गुरु, माता-पिता कोई भी आराध्य हो सकता है लेकिन वह समर्थ, राग-द्वेषजेता, मृत्युञ्जयी एवं षड्विधभग (ऐश्वर्य) सम्पन्न होना चाहिए । दूसरे शब्दों में जिसके प्रति हृदय में उत्कृष्ट श्रद्धा के भाव पैदा हो वह आराध्य होता है । आराध्य की आराधना, पूजा और भक्ति, भक्त के लिए सब कुछ है। भक्ति, भक्त और भगवान्- ये शब्द बहुत ही विशाल अर्थ रखने वाले एवं गूढार्थ संगोपित हैं। भक्ति शब्द की सिद्धि दो प्रकार से होती है। भज-सेवायाम् धातु से भाव में क्तिन् प्रत्यय करने पर सेवा, उपासना, गुरुकथन आदि अर्थों में भक्ति पद की सिद्धि होती है---- "भज इत्येष वे धातु सेवायां परिकीर्तितः। तस्मात्सेवा बुधैः प्रोक्ता भक्तिसाधना भूयसी ॥" भजो-आमर्दने धातु से भी बाहुलकात् करण में क्तिन् प्रत्यय करने पर भक्ति शन्द निष्पन्न होता है । आमर्दन का अर्थ है-तोड़ देना, मर्दन कर देना, काट देना अर्थात् विलीन कर देना। तात्पर्यार्थ प्रभु, उपास्य किंवा तीर्थकर पाद की सेवा, उनके गुणों का कीर्तन उनके प्रति श्रद्धा, भक्ति है जिससे कर्मों एवं पापों का उच्छेद होता है। भक्ति की परिभाषा करते हुए भक्त शिरोमणि नारद कहते हैं---"तदपिताऽखिलाचारिता तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति ।" इसी प्रकार उन्होंने भक्ति को अनिर्वचनीय बतलाते हुए कहा-"अनिर्वचनीयप्रेमस्वरूपम् । मुकास्वादनवत् ।" जो कर्मबन्धनों को काट दे, दुःखों का विनाश कर दे, आत्ममलों का प्रक्षालन कर दे वह भक्ति है । इसलिए इसे 'आत्मरजस्तमोपहा' एवं 'भवरोगहन्त्री' कहा गया भक्ति असीम का अनुभव है। असीम में अपना विलय कर देना, तादात्म्य कर लेना ही भक्ति है । जैसा कि हनुमान ने अपने आराध्य राम में अपने आपको विलीन कर दिया था। राम के सिवाय उनकी कोई अभीप्सा शेष नहीं रही थी। - रामायण का प्रसंग है। लंका विजय के बाद विजयोत्सव मनाया जा रहा था। भगवान् राम ने हर व्यक्ति को उपहार प्रेषित किया लेकिन हनुमान को कुछ भी नहीं पण्ड २०, अंक ४ २६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524582
Book TitleTulsi Prajna 1995 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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