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समाधि तक पहुंचने के लिए व्याधि, आधि और उपाधि को देखना, समझना और उन पर नियंत्रण करना होता है । प्रेक्षा ध्यान यह सब करने के लिए व्यक्ति को सन्नद्ध करता है ।"
इस प्रकार वर्षों से विलुप्त जैन-ध्यान पद्धति को पुनरुज्जीवित करने का श्रेय अणुव्रत अनुशास्ता गुरुदेव श्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ को है, जिन्होंने उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाकर अपने अनुभवों के आधार पर वैज्ञानिक ढंग से व्यवस्थित ध्यान-पद्धति का श्रीगणेश किया, जो प्रेक्षा ध्यान के नाम से पूरे विश्व में प्रतिष्ठित हो चुका है ।
'प्रेक्षा ध्यान' जैन ध्यान पद्धति होते हुए भी सम्प्रदायातीत, सार्वजनीन ध्यान पद्धति है । जैन-अजैन आदि लाखों लोगों ने प्रेक्षा ध्यान शिविरों में भाग लेकर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बीमारियों से मुक्ति का अनुभव किया है वहां कुछ लोगों ने अध्यात्म के उत्कर्ष भेद-विज्ञान - आत्मा भिन्न है, शरीर भिन्न है का भी साक्षात्कार किया है । अस्तु, प्रेक्षा ध्यान से बीमारियां ठीक हो सकती हैं, लेकिन इसका मूल ध्येय है चित्त की निर्मलता, वीतराग भाव को प्राप्त करना, सत्यं शिवं सुन्दरं का साक्षात्कार कर उसमें प्रतिष्ठित हो जाना ।
संदर्भ :
* अखिल भारती प्राच्य विद्या सम्मेलन के ३७ वें रोहतक, हरियाणा अधिवेशन 'प्राकृत जैन विद्या विभाग' में पठित
२. महावीर की साधना का रहस्य, पृ० २६९
२. वही, पृ० २७९
३. वही, पृ० २७९
४. वही, पृ० २८०
५. प्रेक्षा ध्यान : आधार और स्वरूप, पृ० ९
६. वही, पृ० १०
७. वही, पृ० ११
८. मनोनुशासनम् / परि० २ / पृ० १८७-८८
९. प्रेक्षा ध्यान : आधार और स्वरूप, पृ० १६ १०. वही, पृ० १८
११. प्रेक्षा ध्यान : कायोत्सर्ग / भूमिका, पृ० ९
१२. वही, वही, पृ० ९
१३. जीवन विज्ञान : शिक्षा का नया आयाम, पृ० ७३
१४. प्रेक्षा ध्यान : श्वास प्रेक्षा, पृ० १८-१९
१५. संबोधि, पृ० ४२०
१६. किसने कहा मन चंचल है, पृ० ८३ १७. जैनयोग, पृ० १०४
खण्ड २०, अंक ३
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