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न्यूनतम रूप है-प्रत्यक्ष और संरचनात्मक हिंसा का अभाव और अधिकतम रूप हैपूर्ण शांति । शांतिशोध का विचार
शांति के उपर्युक्त अर्थ के बाद शांति शोध को मात्र एक अध्ययन नहीं कहा जा सकता । शांतिशोध निश्चित ही एक अध्ययन से अधिक है । सुगतदास के अनुसार"यदि एक समस्या पर किया जाने वाला अध्ययन उस तत्व की ओर इंगित करता है जो अशांति के लिए जिम्मेदार है तथा जो व्यक्त और अव्यक्त हिंसा से लड़ने के लिए कदम निर्धारित करने में सहयोग करे और सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विकास को आगे बढ़ाए, ऐसे कार्य को शांतिशोध कहा जा सकता है।"
पाश्चात्य विचारक गुनार मिरडल (Gunnar Myrdal) के अनुसार- "शांतिशोध समाजविज्ञानों के विभिन्न क्षेत्रों में एक व्यवस्थित अध्ययन है जो संघर्ष, तनाव और युद्धों के बारे में हमारी समझ और सोच में सुधार लाता है।"
उपर्युक्त दोनों अर्थों को देखें तो सुगतदास की परिभाषा पूर्ण मानी जाएगी क्योंकि वहां केवल अशांति के लिए जिम्मेदार तत्वों पर नियन्त्रण पाने की बात ही नहीं है बल्कि सामाजिक विकास के लिए कदम निर्धारित करने की बात भी शामिल है क्योंकि शांति युद्ध का अभाव मात्र नहीं है, शांति है समाज का समग्र विकास ।।
वर्तमान में शांतिशोध की अभिरुचि केवल शांति और युद्ध की समस्या तथा राजनैतिक संघर्षों तक ही सीमित है। शांति की नवीन परिभाषा के अनुसार युद्ध या हिंसा, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों में सतत विद्यमान है। क्योंकि कुविकास (Mald evelopment), गरीबी, आंतरिक हिंसा और युद्ध में एक निकट सम्बन्ध देखा जा सकता है । इसलिए युद्ध विरोधी साधनों का विकास व खोज आवश्यक है । इन युद्ध विरोधी साधनों का उद्देश्य केवल युद्ध और हिंसा को समाप्त करना नहीं है अपितु सभी प्रकार की हिंसा और समाज के सभी स्तरों में व्याप्त सभी प्रकार के शोषण को समाप्त करना है । इसलिए शांतिशोध का आंदोलन वस्तुतः सम्पूर्ण व मूलभूत् परिवर्तन का आंदोलन है । अहिंसा, हिंसा की विरोधी मात्र नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन की सम्पूर्ण शक्ति है, अतएव शांतिशोध का विचार नए समाज-निर्माण के लिए है एवं शांतिशोध में शांति के इस नवीन संप्रत्यय को सम्मिलित करना होगा। जिससे समाज परिवर्तन के साथ अन्तर्राष्ट्रीय परिवर्तन व कलह-शमन भी संभव हो सके।
शांतिशोध का उपर्युक्त अर्थ व विचार इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि शांतिशोध किसी विशेष अनुशासन या विषय (Discipline) से सम्बन्धित नहीं है, इसे किसी भी दिशा में विकसित किया जा सकता है जो दिशा शांतिशोधकर्ता के मन में हो। इसलिए अन्तरअनुशासित (Inter Disciplinary) है। कोई भी क्षेत्र पूर्ण नहीं है, अंश ही है । उदाहरणार्थ भारत की शांति समस्या को देखें-यह समस्या केवल राजनैतिक नहीं है, आर्थिक भी है, सामाजिक भी है, सांस्कृतिक भी है। किसी एक क्षेत्र के आधार पर हमारा अध्ययन गलत होगा। किसी भी समस्या को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखकर उसके निदान के प्रयत्न हों । गाल्टंग का कहना है कि शांतिशोध में हम विषय केन्द्रित २२६
तुलसी प्रज्ञा
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