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अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और शांतिशोध
शांति से सम्बन्धित दो अवधारणाएं हैं- पश्चिमी अवधारणा और भारतीय अवधारणा | पश्चिमी अवधारणा के अनुसार युद्ध या आयोजित सामूहिक हिंसा का अभाव शांति है। हिंसा, तनाव, शोषण और संरचनात्मक हिंसा के अभाव को भी शांति कहा जा सकता है । इस दृष्टि से नौकरशाही के सम्बन्धों में, जमींदार प्रथा के कृषक और भूमिपति के सम्बन्धों में, उद्योगों के वितरण और उत्पादन सम्बन्धों में, कॉलेज और विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी और प्राध्यापकों के सम्बन्धों में शोषण न हो, तनाव न हो ऐसी स्थिति को भी शांति ही कहा जाएगा । शांति से सम्बन्धित उपर्युक्त विचारों को निषेधात्मक शांति कहा जा सकता है । गाल्टंग भी केवल युद्ध या हिंसा अभाव को निषेधात्मक शांति ही कहते हैं । इसलिए शांति के दूसरे पक्ष भावात्मक शांति को भी हमें देखना होगा ।
बच्छराज दूगड़
भारतीय शांति चितक सुगतदास के अनुसार सामाजिक और मानवीय विकास की प्रक्रिया को भावात्मक शांति कहा जा सकता है । इनके अनुसार शांति का यह अर्थ गांधी ने प्रारम्भ किया था पर उन्होंने शांति के प्रतिपक्ष हिंसा की व्याख्या पहले की थी । हिंसा से उनका अर्थ केवल शक्ति प्रयोग, खूनी क्रांति आदि नहीं पर सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक शोषण भी है । भले ही यह शोषण एक राष्ट्र के द्वारा किसी दूसरे राष्ट्र का किया जाय या एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति का या किसी पुरुष द्वारा स्त्री का शोषण किया जाय । जबकि शांति का रचनात्मक या भावात्मक स्वरूप है समाज व मनुष्य का समग्र विकास । एक विचार अभी भी बना हुआ है कि शांति का अर्थ है एकता, सहयोग और स्थिरता । इसके साथ यह भी सत्य है कि शांति का अनुभव समता में होता है । यद्यपि समता व स्थिरता का तत्व यूरोपीय समाज तंत्र व भारतीय जाति व्यवस्था से प्राप्त हुआ है लेकिन ये तत्व इसके परिणाम थे कि एक समूह दूसरे पर प्रभुत्व जमाता है या बलपूर्वक उन पर अधिकार करता है। ऐसे लोगों को शारीरिक या मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं माना जा सकता। इसलिए एक तरफ तो ऐसी हिंसा व शोषण रुकना चाहिए जबकि दूसरी तरफ उनका समग्र विकास भी होना चाहिए - यही शांति का समग्र रूप है। शांति का केन्द्र मानवीय मस्तिष्क है, इसलिए अंतिम रूप से शांति व्यक्ति को महसूस होनी चाहिए। एक व्यक्ति जब शांति की अवस्था में होगा तब यह केवल अवरोधों व तनावों से ही स्वतन्त्र नहीं होगा, वरन् भावात्मक रूप से सन्तुष्टि व आनन्द का भी अनुभव करेगा । इसलिए शांति का
खंड २०, अंक ३
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