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________________ बढ़ाई जा सकती है । इस प्रकार नियतिवादियों की अवधारणा सही महसूस नहीं होती है । उपरोक्त वैज्ञानिक आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि किसी भी जीव की आयु बढ़ भी सकती है और कम भी हो सकती है । अकाल-मृत्यु भी सम्भव है । शास्त्रों में कथन है कि अकाल मृत्यु निम्न कारणों से हो सकती है- विष-भक्षण से, वेदना की पीड़ा से, रक्त बह जाने से, भय से, शस्त्रघात से, संक्लेश परिणाम से, आहार तथा श्वास के विरोध से । अकाल मृत्यु के समय बांधे हुए आयु कर्म के सभी निषेक एक साथ खिर जाते हैं । सन्दर्भ १. ' क्रमबद्ध पर्याय', ले० -डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल । २. नियतिवाद', ले० - प्रो. महेन्द्र कुमारजी न्यायतीर्थ, 'अनेकांत' नवम्बर १९५६, रतनचन्द जैन, पृ. ८५ ३. 'अकाल-मरण (सैद्धांतिक चर्चा : प्रश्नोत्तर), ले० – ब्र. मुख्त्यार । ४. 'भावपाहुड' - आचार्य कुन्दकुन्द, गाथा – २५,२६ । खण्ड २०, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only २१५ www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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