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सिद्धांत ने विश्व भर के न सिर्फ वैज्ञानिकों बल्कि अनेकों दार्शनिकों को भी प्रभावित किया है । इसी सिद्धांत के अन्तर्गत उन्होंने यह सिद्ध किया कि दो घटनाओं के मध्य का समय-अन्तराल दो अलग-अलग फ्रेमों (frames ) में अलग-अलग होगा । मान लो कि दो फ्रेम S तथा S' हैं । फ्रेम S फ्रेम S2 के सापेक्ष V गति से परिभ्रमण कर रहा है। दोनों फ्रेमों में एक-एक घड़ी रखी है। चूंकि S1 फ्रेम स्थिर है, अतः इसमें रखी घड़ी भी स्थिर है । एक प्रेक्षक इसी फ्रेम में बैठा घटनाओं का निरीक्षण कर रहा है। दो घटनाओं के मध्य फोम 51 में समय-अन्तराल यदि To है । तो फ्रेम S में इन्हीं दो घटनाओं के मध्य का समय अन्तराल T निम्न प्रकार से होगा -
T
To
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V2
C 2
यहां Vफम S की फ्रम S के सापेक्ष गति है तथा C प्रकाश का वेग है जिसका मान ३x १० सेमी० एक सेकिण्ड' होता है ।
उपरोक्त सूत्र से स्पष्ट है कि फोम S में समय अन्तराल T फ्रेम S1 में ओव्जर्ल्ड ( निरीक्षण) किए गए समय-अन्तराल To से अधिक होगा। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि फोम S में घड़ियां धीमी गति से चलेगी ।
ये दो घटनाएं माना कि यही महसूस होगा कि दो अनुसार समय दो घण्टे
यदि हम फम S1 में बैठे दो घटनाओं को देख रहे हैं । दो घण्टों में घटित होती हैं । फोम S में बैठे प्रेक्षक को तो घटनाओं के मध्य का समय-अन्तराल दो घण्टे हैं । लेकिन हमारे से अधिक होगा । इसको हम किसी व्यक्ति की आयु के सन्दर्भ में हैं कि यदि किसी व्यक्ति की आयु सौ वर्ष की है । यदि वह फ्रेम S में V गति से परिभ्रमण करने लगे तो $ में हमें उसकी आयु सौ वर्ष से अधिक महसूस होगी । या हम कह सकते हैं कि व्यक्ति की आयु तेज गति से घूमने पर बढ़ जाती है ।
इस प्रकार कह सकते
इस प्रकार 'सापेक्षवाद के सिद्धांत' से यही सिद्ध होता है कि व्यक्ति की आयु बढ़ भी सकती है ।
जीव-विज्ञान
अब हम प्रयोग द्वारा यह देखना चाहेंगे कि किसी जीव की आयु कैसे बढ़ती है । कुछ वर्ष पूर्व एक समाचार छपा था कि रूस के सुदूर पूर्वी बर्फीले क्षेत्र में कुछ खान मजदूर सोने की खानों में खुदाई कर रहे थे । वहां उन्होंने ग्यारह मीटर मोटी बर्फ की तह के नीचे दबे छिपकलीनुमा एक ऐसे जन्तु को पाया जो जीवित था। इस प्राणी का वैज्ञानिक परीक्षण कराया गया । कार्बन डेटिंग से पता चला कि यह प्राणी ९० वर्ष पूर्व परमाफोस्ट में फ्रीज हो गया था । सामान्यतः इसकी आयु दस वर्ष की होती है । लेकिन ९० वर्षों तक सुषुप्त अवस्था में फ्रीज रहने के बाद पुनः उसमें हलन चलन प्रारम्भ हो गई तथा सामान्य रीति से जीने लगा। वैज्ञानिकों के अनुसार इस प्राणी का
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तुलसी प्रज्ञा
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