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________________ भी प्रयत्न कर लें पर जो नहीं होना होता है वह नहीं ही होगा और जो होना है उसे कोई रोक नहीं सकता । सब जीवों का सब कुछ नियत है, वह अपनी गति से होगा ही।' इस प्रकार के नियतिवाद की आचार्यों ने पर मतों (यानि कि जैन मत से भिन्न) में गणना की है तथा ऐसी मान्यता वाले को एकांत मिथ्यादृष्टि कहा है। जैन धर्म में सर्वदा नियति का एकांत नहीं है। इन विद्वानों का कहना है कि जैन धर्म दर्शन का मूल सिद्धांत अनेकांत है। इसीलिए सर्वज्ञ देव ने नियति नय और अनियति नय इन दो परस्पर विरोधी नयों का उपदेश दिया है। सभी कुछ काल व्यवस्थित है, ऐसा भी एकांत नहीं है। जिन जीवों का मरण शस्त्र-प्रहार आदि बाह्य कारणों के बिना होता है उनका मरणकाल-व्यवस्थित है। किन्तु शस्त्र-प्रहार आदि बाह्य कारणों से जिनका मरण होता है उनका अपमृत्यु काल उत्पन्न होता है। सर्वज्ञदेव ने भी काल-नय और अकाल-नय इस प्रकार परस्पर विरोधी दो नय कहे हैं । यदि सर्वज्ञदेव इन दोनों में से एक ही नय को कहते तो एकांत मिथ्यात्व का दूषण आ जाता । काल-नय, अकाल-नय का स्वरूप सर्वज्ञदेव ने इस प्रकार कहा है --- 'काल-नय से कार्य की सिद्धि समय के अधीन है। जैसे आम गर्मी के दिनों में पकता है। अतः काल नय से कार्य अपने व्यवस्थित समय पर होता है, अर्थात् काल के अनुसार होता है। अकाल नय से कार्य की सिद्धि समय के अधीन नहीं है। वैसे-आम को पाल लगाकर कृत्रिम गर्मी से पका लिया जाता है । अतः अकाल नय से कार्य होने का काल व्यवस्थित नहीं है। अकाम निर्जरा तथा सकाम निर्जरा ___ अकाम निर्जरा तथा सकाम निर्जरा को भी आचार्यों ने आम का उदाहरण देकर समझाया है। निर्जरा दो प्रकार की होती हैं । जब कर्मों का उदय अपने निश्चित समय पर होता है उसे अकाम निर्जरा कहते हैं और जब कर्मों को तप द्वारा समय से पहले ही उदय में लाया जाता है उसे सकाम निर्जरा कहते हैं । मुनिराज अपने कर्मों की निर्जरा सकाम रीति से करते हैं। यहां यह कहने का तात्पर्य मात्र इतना ही है कि बांधे हुए कर्म एक निश्चित समय पर उदय में आएंगे ऐसा एकांत नहीं है। इसी प्रकार किसको कितने वर्ष तक जीना है, यह उसके बांधे हुए आयु कर्मों के खिरने पर निर्भर करता है। आयु कर्म के निषेक निश्चित होते हैं। वे प्रति समय एक निश्चित आवृत्ति में खिरते रहते हैं। सामान्य परिस्थितियों में इन निषेकों के खिरने की आवृति निश्चित रहती है । लेकिन सड़क दुर्घटना आदि में मृत्यु के समय सारे निषेक एक साथ खिर जाते हैं । इस प्रकार निषेकों का खिरना समय के अधीन नहीं है। अतः मरण भी एक निश्चित समय पर होता है, हमेशा ऐसा ही मानना भी उचित नहीं है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण __ अभी तक हमने अकाल मरण पर अलग-अलग विद्वानों के अलग-अलग मतों की २१० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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