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________________ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के पूर्वाह्न काल में ग्रन्थ समाप्त किया। उसी दिन वहां से भेजे गये उन दोनों ने “गुरु-वयणमलंघाणीज्ज" गुरु के वचन अलंघनीय होते हैं। ऐसा विचार कर, आते हुए अंकलेश्वर (गुजरात) में वर्षा योग किया । ज्येष्ठसितपक्ष पंचम्यां चातुर्वर्ण्य संघ समवेतः । तत्पुस्तकोपकरणाधात् क्रियापूर्वकं पूजाम् ॥४८॥ श्रुतपंचमीति तेन प्रख्याति तिथिरयं परामाप । अद्यापि येन तस्यां श्रुतपूजां कुर्वते जैनाः ॥ -इन्द्रनंदी श्रुतावतार अर्थ-भूतबली आचार्य ने षखण्डागम की रचना करके ज्येष्ठ शुक्ला को चतुर्विध संघ के साथ उन शास्त्रों को उपकरण मानकर श्रुतज्ञान की पूजा की जिससे श्रुतपंचमी तिथि की प्रख्याति जैनियों में आज तक चली आ रही है और उस तिथि को वे श्रत की पूजा करते हैं। वर्षा योग को समाप्त कर जिनपालित पुष्पदन्त आचार्य ने दीक्षा दी। बीस प्ररूपणा गर्भित सत्प्ररूपणा के सूत्र बनाकर जिनपालित को पढ़ाकर उन्हें भूतबली आचार्य के पास भेजा । भूतबलि आचार्य ने जिनपालित से जान लिया कि पुष्पदन्त आचार्य की अल्पायु है। ___ अतः महाकर्म प्रकृति प्राभूत का विच्छेद न हो इस प्रकार विचार कर भूतबलि आचार्य ने द्रव्यप्रमाणानुगम को आदि लेकर ग्रन्थ रचना की। इसलिये इस खण्ड सिद्धांत की अपेक्षा भूतबलि एवं पुष्पदंत आचार्य भी श्रुत के कर्ता कहे जाते हैं। ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी श्रुतपंचमी का महान् पर्व है, इसको ज्ञानपंचमी भी कहते हैं । ॥ पांच श्रुत धाम हैं । १. पवित्र श्रुततीर्थ राजगृह का विपुलाचल है जहां महावीर स्वामी ने श्रुतज्ञान की गंगा बहायी और गणधर देव ने इसे झेलकर बारह अंगों की रचना २. गिरिनार की चन्द्रगुफा-जहां धरसेन स्वामी, पुष्पदन्त व भूतबलि इन मुनि ___ द्वयवरों को अमूल्य श्रुत का उत्तराधिकार दिया। ३. अंकलेश्वर जहां वह जिनवाणी पुस्तकारूढ हुई और चतुर्विध संघ ने श्रुत का __ महोत्सव किया। ४. मूडबद्री जहां पर जिनवाणी ताड़पत्रों पर सुरक्षित रूप से विराजमान है और __ आज हमें प्राप्त हुई। ५. पोन्नूर हिल जहां श्री कुं. कुं. आचार्य ने परमागम शास्त्र, समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड आदि की रचना की। ये यजन्ते श्रुतं भक्त्या ते यजन्तेऽञ्जसः जिनम् । न किंचिदन्तरं प्राहुराप्ता हि श्रुत देवयोः । १९६ • तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524581
Book TitleTulsi Prajna 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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