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नहीं कर सकते । वस्तुतः अहिंसा और परिग्रह दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते । इसलिए अपरिग्रह के इस दर्पण में आज के समाज तथा आज के युग का स्वरूप देखना होगा तथा उस दिशा में आगे बढ़ना होगा । गांधी ने यरवदा मन्दिर में लिखा है ---"परिग्रह वस्तुतः भविष्य की दृष्टि से किया जाता है। परमात्मा परिग्रह नहीं करता । वह अपनी आवश्यक वस्तु रोज-ब-रोज पैदा करता है। इसलिए यदि हमें उन पर दृढ़ विश्वास है तो हमें भी समझना चाहिए कि वह हमें आवश्यक चीजें रोज-ब-रोज देता है और देता रहेगा।" यद्यपि अहिंसा और अपरिग्रह की पूर्णता तब तक एक अप्राप्य आदर्श मात्र रहेगी जब तब हम जीवित हैं क्योंकि शरीर रूपी परिग्रह तो सदा साथ रहेगा तथापि हमें सर्वदा उसकी साधना के लिए सचेष्ट रहना चाहिए ।
खण्ड २०, अंक ३
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