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लब्धियों का वास्तविक दिग्दर्शन किया है।
लेखक के उपर्युक्त कथन में सत्यांश है। उसने इस इतिहास को उपलब्ध सभी तरह के दस्तावेजों का उपयोग करके फलितार्थ की तरह लिखा है। कायमखानियों के उद्भव में तत्कालीन राजनीति; राठोड़ और गहलोतों की मजबूरी; देहली सल्तनत पर तैमूर के आक्रमण और उसके प्रतिनिधि खिचखां के सामने दौलतखां का आत्मसमर्पण तथा शेखावाटी प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिति ने महत्वपूर्ण योगदान किया। अपनी नबाबियां कायम करने के बाद कायमखानी नबाबों ने दिल्ली से अपने सम्बन्ध बनाए रखे और वे पठानों और राजपूतों के मध्य निर्विघ्न रूप से राज्य करते रहे । इनकी धार्मिक सहिष्णुता, कलाप्रेम और शौर्य भी उन्हें यथास्थिति कायम रहने में मददगार बना।
__ लेखक ने न्यामतखां उपनाम जान कवि और प्रसिद्ध कवयित्री ताज के कायमखानी-साहित्य की ओर विद्वानों का ध्यान खींचा है । झुन्झुनू और फतहपुर के स्थापत्य का सचित्र परिचय दिया है। केड़, बड़वासी, बेरी और ढोसी के कायमखानियों का लुप्त इतिहास भी लेखक ने खोज निकाला है। इसी प्रकार नबाब कायमखां सम्बन्धी उनका पर्यालोचित-इतिहास भी विश्वसनीय बन पड़ा है।
आशा है, वे इसी प्रकार चौहानों से निकले दूसरे वंश-मोहिलों का इतिहास भी शीघ्र ही प्रकाश में लाएंगे-जैसी कि उन्होंने घोषणा की है। प्राप्ति स्वीकार १. आचार्य पुष्पदन्त सागरजी महाराज के शिष्य मुनि तरुणसागर और मुनि
प्रज्ञासागरजी की दो कृतियां प्राप्त हुई हैं त्रमशः प्रेस वार्ताएं जिसमें पांच प्रेस वार्ताओं का संकलन है और अनहब गूंज जिसमें प्रशासागरजी की कविताएं हैं। २. आचार्यश्री देवराज यशसूरीश्वरजी महाराज द्वारा लिखित तीन लघु पुस्तिकाएं प्राप्त हुई हैं -- (१) जैन धर्म की रूपरेखा जो पूर्व, गुजराती में लिखी गई थी उसका यह हिन्दी अनुवाद है। (२) पर्युषण-चिन्तनिका, पर्वाधिराज पर्यषण के आठ दिनों का उपदेश और (३) रात्रि भोजन महापाप-पुस्तिका में रात्रि भोजन के दोष बताकर उसे त्यागने की प्रेरणा दी गई है।
__ -परमेश्वर सोलंकी
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