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जैन धर्म में रथयात्रा महोत्सव
D सोहन कृष्ण पुरोहित
जैन समाज में तीर्थङ्करों की प्रतिमा के रथ यात्रा उत्सव को मनाने की परम्परा प्राचीन काल से ही विद्यमान रही है। जैन ग्रन्थ-परिशिष्ट पर्व तथा बृहत्कल्प सूत्र में रथयात्रा के संदर्भ मिलते हैं। एक बार उज्जयिनी में जीवन्त स्वामी की रथयात्रा के दौरान राजा सम्प्रति और आचार्य सुहस्ती की मुलाकात हुई।' बाद में आचार्य सुहस्ती की प्रेरणा से सम्प्रति ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया और उसने सैकड़ों जिनालयों का निर्माण करवाया।
जैन धर्म में सम्यग्दर्शन का महत्त्वपूर्ण अंग प्रभावना है। जिसका तात्पर्य जिन धर्म के महत्त्व को प्रकट करना है । लोगों की धर्म के विषय में जानकारी बढ़ने पर वे उसकी ओर तीव्रता से प्रवृत होते हैं । तीर्थंकरों की रथयात्रा को इस प्रभावना का ही एक रूप माना जा सकता है। जैन धर्मावलम्बी पंच कल्याणक दिवस के अवसर पर तीर्थंकरों की प्रतिमाओं की रथयात्रा उत्साहपूर्वक निकालते हैं। पंचकल्याणक दिवस इस प्रकार है :--तीर्थंकर के गर्भ में आने का संकेत दिवस, तीर्थकर का जन्म दिवस, दीक्षा दिवस, कैवल्य ज्ञान प्राप्ति दिवस और निर्वाण प्राप्ति दिवस ।
प्राचीन अभिलेखों एवं साहित्यिक ग्रंथों में तीथंकर प्रतिमा की रथयात्रा निकालने के अनेक संदर्भ विद्यमान हैं। कलिंगराज खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से सकेतित है कि राजा नन्द कलिंग से जिन प्रतिमा पाटलिपुत्र ले गया था जिसे वह वापिस अपने राज्य में ले आया। कुछ चित्र भी देखने को मिलते हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि खारवेल ने जिन प्रतिमा की वापसी पर उसका शानदार जुलूस निकाला।
सोमदेव रचित यशस्तिलक चम्पू के अनुसार मथुरा में अष्टाह्निका पर्व के अवसर पर रथयात्रा निकालने की प्राचीन परम्परा थी। तीर्थंकरों की रथयात्रा निकालने की परम्परा मालवा के जैन समाज में भी प्रचलित रही। वहां जगत् स्वामी की विभिन्न अवसरों पर रथयात्रा निकाली जाती थी।
राजस्थान और उसके पड़ोसी राज्य गुजरात में जैन समाज रथयात्रा उत्सव प्राचीनकाल से ही मनाता रहा है । इस क्षेत्र में रथयात्रा को गुर्जरी यात्रा कहकर पुकारा जाता था। लालराई लेख (११७६ ई०) में देवयात्रा उत्सव में शांतिनाथ को चौहान कीतू और उसकी पत्नी द्वारा जो अर्पण करने का उल्लेख मिलता है। गुजरात में शांतिनाथ की रथयात्रा के कई आभिलेखीय प्रमाण मिलते हैं । जैन ग्रन्थों के अनुसार कुमारपाल चालुक्य अष्टाह्निका महोत्सव का आयोजन धूमधाम से करता था। पाटन खण्ड २०, बंक ३
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