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मालवणिया अभिनंदन ग्रंथ (वाराणसी - १९९२ ई० ) में प्रकाशित बृहदगच्छ का संक्षिप्त इतिहास" नामक लेख पृष्ठ १०५-११७ ५. शिवप्रसाद - "राजगच्छ का संक्षिप्त इतिहास" संस्कृतिसंधान जिल्द ५, वाराणसी, १९९२ ई०, पृ० ३३-४९
६.
आसि सिरि-बद्धमाणो पवड्डमाणो गुण- सिरीए ॥ २४० ॥
एगो ताण जिणेसर - सूरी सूरोव्व उक्कड पयावो । तस्स सिरि-बुद्धिसागर सूरी य सहोयरो वीओ ॥२४५॥
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तडरह - अवसडू महीरुहोह - उम्मूलणम्मि सुसमत्था । अज्झाय-पवर - तित्था पंचग्गंथी नई पवरा ।। २४८ ॥ तेसि सीस - वरो धणेसर - मुणी एवं कह पायडं चड्डावल्लि पुरी ठिओ स-गुरुणो आणाए पाटंतरा । कासी विक्कम-वच्छरम्मि ए गए वाणंक - सुन्नोडुपे मासे भदूव गुरुम्मि कसिणे वीया धणिट्ठा - दिणे ॥ २४९ ॥ सुरसुंदरीचरियं संपा० मुनिश्री राजविजय, जैन विविध साहित्य ग्रंथ - माला, ग्रन्थांक १, वाराणसी १९१६ ईस्वी, ग्रन्थकार की प्रशस्ति, पृ० २८५-२८६ ।
७. कालेणं संभूओ भयवं सिरिवद्धमाणमुणिबसभो । निप्पडिमपसमलच्छीविच्छड्डाखंडभंडारो ॥
ववहारनिच्छ्यनय व्व दव्वभावत्थय व्व धम्मस्स । परमुन्नइजणगा तस्स दोण्णि सिस्सा समुप्पण्णा ॥ पढमो सिरिरिजिणेसरो त्ति सूरे व्व जम्मि उइयम्मि | होत्था पहावहारो दूरं तेयस्तिचक्कस्स ||
अज्ज वि य जस्स हरहासहंसगोरं गुणाण पब्भारं । सुमरंता भव्वा उव्वहंति रोमंचमंगेसु || बीओ उण विरइयनिउणपवरवागरणपमुहबहुसत्थो । नामेण बुद्धिसागरसूरि त्ति अहेसि जयपयडो || तेसि पयपंकपच्छंगसंगसपत्तपरममाहप्पो । सिस्सो पढमो जिणचंदसूरिनाम समुप्पन्नो || अन्नो य पुन्निमाससहरो व्व निव्ववियभव्वकुमुयवणो । सिरिअभयदेवसूरि त्ति पत्तकित्ती परं भुवणे ।
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तुलसी प्रज्ञा
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