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जैन आगमों में सर्वप्रधान और वृहप्परिमाण भगवतीसूत्र की व्याख्या वि० सं० १२२८ / ई० सन् १९७२ में पूर्ण की। इनके द्वारा रची गयी अन्य टीकाओं का रचनाकाल ज्ञात नहीं है । उक्त टीकाओं के अतिरिक्त प्रज्ञापना तृतीय पद संग्रहणी, पंचाशकवृत्ति, जयतिहुअणस्तोत्र, पंचनिर्ग्रन्थी और सप्ततिकाभाष्य भी इन्हीं की कृतियां हैं । प्रभावकचरित के अनुसार पाटण में चौलुक्यनरेश कर्ण (वि० सं० ११२१-४९ / ईस्वी सन् १०६५-९३) के शासनकाल में इनका स्वर्गवास हुआ । विभिन्न पट्टावलियों में इनके स्वर्गवास का समय वि० सं० ११३५ / ईस्वी सन् १०७९ दिया गया है और पाटण के स्थान पर कपटवज में इनका स्वर्गवास होना बतलाया गया है । ३४
४. श्रीचन्दसूरि श्वेताम्बर श्रमण परम्परा में श्रीचन्दसूरि नामक कई मुनिजन हो चुके हैं । विवेच्य श्रीचंद्रसूरि चंद्रकुल के आचार्य सर्वदेवसूरि के संतानीय जयसिंहसूरि प्रशिष्य और देवेन्द्रसूरि के शिष्य तथा चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज (वि० सं० ११५०-९८ / ई० सन् १०९४-४२ ) और कुमारपाल (वि० सं० १९९९-१२२८ / ई० सन् ११४३-७२) के समसामयिक थे । जैसाकि लेख के प्रारम्भ में ही कहा जा चुका है इन्होंने वि० सं० १२१४ / ईस्वी सन् १९५८ में प्राकृत भाषा में ८१२७ श्लोक परिमाण सणकुमारचरिय ( सनत्कुमारचरित) की रचना की। यह कृति अहिलपुरपाटण में श्रेष्ठी सोमेश्वर के अनुरोध पर रची गयी । चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार के जीवन पर प्राकृत भाषा में रची गयी यह सबसे बड़ी रचना है । कृति के प्रारम्भ में रचनाकार ने हरिभद्रसूरि, सिद्धमहाकवि, अभयदेवसूरि धनपाल, देवचंद्रसूरि, शान्तिसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि और मलधारी हेमचन्द्रसूरि की कृतियों का स्मरण करते हुए उनकी प्रशंसा की है । ३५ इनके द्वारा रचित किन्हीं अन्य कृतियों का उल्लेख नहीं मिलता और न ही इनके बारे में अन्य कोई जानकारी ही मिल पाती है ।
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५ बालचन्द्रसूरि ये चंद्रगच्छीय हरिभद्रसूरि के पट्टधर तथा महामात्य वस्तुपाल - तेजपाल के समकालीन थे । जैसाकि इस निबन्ध के प्रारम्भिक पृष्ठों में कहा गया है इन्होंने महामात्य वस्तुपाल के पुत्र जैत्रसिंह की प्रार्थना पर वसन्तविलास महाकाव्य की रचना की । इस कृति में वस्तुपाल के उपनाम वसंतपाल के नाम से उसकी जीवनी लिखी गयी है । इस कृति में रचनाकाल नहीं दिया गया है, किंतु वस्तुपाल की मृत्यु की तिथि वि० सं० १२९६ / ईस्वी सन् १२४० दी गयी है जिससे स्पष्ट है कि उक्त तिथि के पश्चात् ही इसकी रचना हुई थी । इन्होंने कवि आसड़ द्वारा रचित उपदेशकन्दली और विवेकमंजरी पर वृत्तियां लिखीं। करुणावत्रा
खण्ड १९, अंक ३
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