SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रामची सूरि एवं गुणचन्द्र गणि कृत नाट्यदर्पण में मौलिक चिंतन । कृष्णपाल त्रिपाठी कला के उत्कृष्टतम रूप 'नाट्य' के स्वरुप, तत्त्व एवं प्रकृति को पूर्णतः हृदयङ्गम करने के लिए भरत-प्रणीत 'नाट्यशास्त्र' की अप्रतिम महत्ता है। यह केवल नाट्यकला का ही नहीं, अपितु समस्त ललित-कलाओं का विश्वकोष है। इसमें नाट्य-सिद्धांतों की जितनी व्यापक एवं सर्वाङ्गीण विवेचना की गई है, उतनी किसी भी अन्य ग्रन्थ में प्राप्त नहीं होती। इसीलिए इसे 'नाट्यवेद' की महनीय संज्ञा से अभिहित किया जाता है। विषय की व्यापकता एवं विविधता के कारण 'नाट्यशास्त्र' अत्यन्त विशाल ग्रन्थ है। इसके कुल छत्तीस अध्यायों में लगभग छः सहस्र श्लोक हैं। नाट्य विषयक मन्तव्य भी प्रायः बिखरे हुए और अत्यधिक विस्तार के साथ प्रस्तुत किये जाने के कारण इस ग्रन्थ द्वारा नाट्यविद्या का परिज्ञान विद्वानों के लिए भले ही सुगम हो परन्तु सामान्यबुद्धिजनों के लिए वह दुरूह ही है । अतः नाट्य-सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक विषयों को बोधगम्य बनाने के लिए ही परवर्ती आचार्यों ने अनेक स्वतन्त्र एवं संक्षिप्त ग्रंथों का प्रणयन किया, जिनमें 'नाट्यदर्पण' का प्रमुख स्थान है। यह सुप्रसिद्ध जैनाचार्य श्री हेमचन्द सूरि के दो वरिष्ठ शिष्यों- रामचन्द्रसूरि एवं गुणचन्द्रगणि की सम्मिलित रचना है । इसमें मुख्यतः रूपक-रचना से सम्बन्धित विषयों का ही प्रतिपादन किया गया है। कुछ लोगों का विचार है कि इसकी रचना धनञ्जय के 'दशरूपक' की प्रतिद्वन्द्विता में हई है। डॉ. के. एच. त्रिवेदी ने नाट्यदर्पण का रचना-काल द्वादश शताब्दी का उत्तरार्ध अर्थात् सन् ११५० से ११७० ई० के मध्य माना है ।। नाट्यदर्पण के मुख्यतः तीन अंश हैं -कारिका, वृत्ति एवं उदाहरण । कारिकायें सूत्र-शैली में निबद्ध हैं, जिनमें अनुष्टुप् छन्द का प्रयोग हुआ है । सम्पूर्ण ग्रन्थ में दो सौ सात कारिकायें हैं, जिन्हें चार विवेकों में विभाजित किया गया है। ये चारों विवेक क्रमशः 'नाटकनिर्णय', 'प्रकरणाचे कादशरूप निर्णय', 'वृत्ति-रस-भावाभिनयविचार' एवं 'सर्वरूपक-साधारण-लक्षण खण्ड १९, अंक ४ २९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524578
Book TitleTulsi Prajna 1994 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy