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थी। इस महाकाव्य में ग्यारह सर्ग हैं।
. प्रथम सर्ग में अणहिलवाड़ में शासन करने वाले प्रथम राजवंश चापोत्कट (चावड़ा) के राजाओं की वंशावली और उक्त नगर का वर्णन किया गया है। इसमें चावड़ा वंश के आठ राजाओं वनराज, योगिराज, रत्नादित्य, वैरसिंह, क्षेमराज, चामुण्ड, राहड़ और भूभटके नाम गिनाये गये हैं । इस सर्ग में उल्लेख है कि वनराज ने अणहिलवाड़ में पंचसारा पार्श्वनाथ के मन्दिर का निर्माण कराया था, बाद में उसका जीर्णोद्धार वस्तुपाल ने कराया।
दूसरे सर्ग में चौलुक्य वंश का वर्णन है जिसमें इस वंश के संस्थापक मूलराज से लेकर भीम द्वितीय तक के शासकों का संक्षिप्त इतिहास दिया गया है। तत्पश्चात् इसी सर्ग में सामन्तों और मण्डलीकों द्वारा भीम के शासन में हस्तक्षेप करना और भीम का चिन्तामग्न होना वर्णित है। तृतीय सर्ग में राजा भीम बघेला लवणप्रसाद को सर्वेश्वर पद पर, उसके पुत्र वीरधवल को युवराज पद पर तथा वस्तुपाल एवं तेजपाल भातृयुगल को मन्त्रिपद पर नियुक्त करता है। चतुर्थ से एकादश सर्ग पर्यन्त वस्तुपाल के धार्मिक सुकृत्यों का सङ्कीर्तन किया गया है।
यह सबसे पहला ऐतिहासिक महाकाव्य है जिसमें चावड़ा वंश का वर्णन किया गया है । ऐतिहासिक पक्ष की प्रधानता के कारण इसका साहित्यिक पक्ष दब सा गया है। इसमें अङ्गीरस के रूप में किसी भी रस की स्पष्ट रूप से अभिव्यक्ति नहीं हुई है। इसमें वस्तुपाल और तेजपाल की चरित्रगत विशेषताओं को भलीभांति उघाटित किया गया है। इस महाकाव्य का कलेवर बहुत छोटा (५३३ श्लोक) है। इसकी भाषा सरल और कहींकहीं अलंकार-सम्पन्न है। इसमें ऐतिहासिक शैली की प्रधानता है। वसन्तविलास महाकाव्य
__ इस महाकाव्य में भी महामात्य वस्तुपाल का जीवन चरित वर्णित है। वस्तुपाल के अपरनाम 'वसन्त' या 'वसन्तपाल' के आधार पर इस महाकाव्य का नामकरण हुआ है। इसके रचयिता चन्द्रगच्छीय जैनाचार्य हरिभद्रसूरि के शिष्य बालचन्द्रसूरि हैं । इस महाकाव्य की रचना वस्तुपाल की मृत्यु के उपरान्त उसके पुत्र जैत्रसिंह के अनुरोध पर की गयी है। इसी आधार पर इसका रचना काल वि. सं. १२९६ से १३१० के मध्य अनुमानित किया गया है। इसमें चौदह सर्ग हैं जिनमें कुल १०२१ श्लोक हैं।"
प्रथम सर्ग में सरस्वती एवं आदिनाथ की स्तुति रूप मंगलाचरण के पश्चात् सज्जन-प्रशंसा, खल-निंदा, काव्य माहात्म्य और कवि का स्वकीय परिचय है । द्वितीय सर्ग में चौलुक्यों की राजधानी अणहिलवाड़ पाटन का
खण्ड १९, अंक ४
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