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________________ शरीर की संधियों से उत्पन्न होता है स्थानांग में उल्लेख मिलता है कि ये सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं । " इन सातों स्वरों के नामों की सार्थकता बताते हुए नारदी - शिक्षा में कहा गया है कि - षड्ज संज्ञा की सार्थकता इसमें है कि वह नासा आदि छह स्थानो से उद्भूत होता है । 'ऋषभ' अर्थात् बैल से समान नाद करने वाला है । 'गांधार' नासिका के लिए गन्धावह होने के कारण अन्वर्थक बताया गया है । 'मध्यम' की अन्वर्थकता इसमें है कि वह उरस जैसे मध्यमवर्ती स्थान में आहत होता है । 'पंचम' संज्ञा इसलिए सार्थक है कि इसका उच्चारण पांच स्थानों नाभि आदि में सम्मिलित रूप से होता है । - स्थानांग में सातों स्वरों के लक्षणों का उल्लेख किया ११ स्वर-लक्षण -- गया है". १. षड्ज स्वर वाले व्यक्ति आजीविका पाते हैं । उनका प्रयत्न निष्फल नहीं होता । उनके गाएं, मित्र और पुत्र होते हैं । वे स्त्रियों को प्रिय होते हैं । I २. ऋषभ स्वर वाले व्यक्ति को ऐश्वर्य, सेनापतित्व, धन, वस्त्र, गंध, आभूषण, स्त्री, शयन और आसन प्राप्त होते हैं । ३. गांधार स्वर वाले व्यक्ति गाने में कुशल श्रेष्ठ जीविका वाले कला में कुशल, कवि, प्राज्ञ और विभिन्न शास्त्रों के पारगामी होते हैं । ४. मध्यम स्वर वाले व्यक्ति सुख से जीते हैं, खाते, पीते हैं और दान देते हैं । ५. पंचम स्वर वाले व्यक्ति राजा, शूर, संग्रहकर्त्ता और अनेक गणों के नायक होते हैं । ६. धैवत स्वर वाले व्यक्ति कलहप्रिय, पक्षियों को मारनेवाले तथा हिरणों, सूअरों और मछलियों को मारने वाले होते हैं । ७. निषाद स्वर वाले व्यक्ति चाण्डाल - फांसी देने वाले, मुट्ठीबाज, विभिन्न पापकर्म करने वाले, गोघातक और चोर होते हैं । स्थानांग में जीव तथा अजीव निश्रित ध्वनि के साथ सप्त स्वरों का उल्लेख मिलता है । जीव निश्रित सप्त स्वर निम्न हैं१. मयूर षड्ज स्वर में बोलता है । २. कुक्कुट ऋषभ स्वर में बोलता है । ३. हंस गांधार स्वर में बोलता है । ४. गवेलक मध्यम स्वर में बोलता है । ५. वसंत में कोयल पंचम स्वर में बोलती है । इसका अर्थ है कोयल सदा पंचम स्वर में नहीं बोलती है । ६. क्रौंच और सारस धैवत स्वर में बोलते हैं । ७. हाथी निषाद स्वर बोलता है । १३ नारदी शिक्षा में प्राणियों की ध्वनि के साथ सप्त स्वरों का उल्लेख -१. षड्ज स्वर - मयूर । २. ऋषभ तुलसी प्रज्ञा नितान्त भिन्न प्रकार से मिलता है ३७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524578
Book TitleTulsi Prajna 1994 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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