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जीवन-विज्ञान के प्रयोग :
मनुष्य का क्रूरतापूर्ण आचरण बंद हो सकता है ?
समणी स्थितप्रज्ञा
आज चारों ओर स्व र बुलन्द हो रहा है कि सामाजिक बुराइयां बढ़ रही हैं । समाज का ढांचा विकृतियों के दबाव से चरमरा रहा है । इस दिशा में गहराई से चिन्तन करें तो आज की सारी विसंगतियां, आज के सारे विरोधाभास, आज की सारी समस्याएं ----चाहे आर्थिक क्षेत्र में हैं. चाहे
राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में हैं उनका मूल उत्स है. मनुष्य का क्रूरतापूर्ण आचरण ।
क्या क्रूरता के बिना कोई आदमी किसी को धोखा दे सकता है ? किसी को लूट सकता है ? मिलावट कर सकता है ? रिश्वत ले सकता है ? ये सारी बातें नहीं हो सकतीं यदि पारस्परिक सद्भावना हो ! पर एक क्रूरता ऐसी है कि सब-कुछ खाओ तो भी हजम हो जाता है।' एक बीमार पड़ा है मृत्यु-शय्या पर । लेकिन जब तक अधिकारियों की भेंट-पूजा नहीं हो जाती तब तक हॉस्पिटल में भर्ती होना भी कठिन हो जाता है। एक व्यवसामी गायों को, भैंसों को बिना मौत मार सकता है। चारे में ऐसी मिलावट कर देता है कि चारा खाते ही पशु मरने लग जाते हैं। क्या करता के बिना ऐसा संभव है ? यह सारी आर्थिक भ्रष्टाचार की कहानी क्रूरता की कहानी है।'
आज आर्थिक समस्या को सुलझाने के लिए अनेक प्रयत्न किये जा रहे हैं। यदि उन प्रयत्नों के साथ-साथ शुद्धि और व्यक्तिगत उपभोग का संयम ये दो बातें और जोड़ दी जाएं तो निश्चित ही इस समस्या के समाधान में आध्यात्म का बहुत बड़ा योग होगा। भगवान महावीर ने गृहस्थों की नैतिक संहिता में जो नियम निश्चित किए थे, उनसे समाज-व्यवस्था को भी बहुत सहारा मिला। उदाहरणस्वरूप इन नियमों का निर्देश किया जा सकता है
खण्ड १९, अंक ३
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