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का किस प्रकार उपयोग किया जाय की जानकारी 'अमृत कलश-१' में देखें । प्रत्येक मंत्र का जाप स्वरमय, लययुक्त तथा श्वास-क्रिया के आधार पर किया जावे तो उसका फल शीघ्र होता है। 'ण' व्यञ्जन की ध्वनि 'न' से अधिक वजनदार व प्रभावी है जो शरीर-वीणा के समस्त स्नायुओं को तरंगित करती हुई एक प्रकार का विशिष्ठ आनन्द प्रदान करती है। इस प्रकार हम अनुभव करते हैं कि संगीतकला की दृष्टि से 'न' व्यञ्जन से 'ण' व्यञ्जन अधिक महत्वपूर्ण व प्रभावशाली है।
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तुलसी प्रज्ञा
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