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उस युग में अनिवद्ध - गान करते समय 'ण' का प्रयोग किया जाता था । सन् १९४१ में एक महात्मा गुणिजनपुरी ( प्रज्ञा चक्षु) द्वारा राग स्वरूप प्रकट करते समय ऐसा गान लेखक ने सुना था जो अत्यन्त प्रभावशाली तथा वैदिक संगीत शैली के अनुरूप लगता था । ऐसी ओजपूर्ण व मधुर ध्वनि प्राणी मात्र को प्रभावित व तरंगित करने वाली थी ।
योगियों ने मानव शरीर को बीणा की संज्ञा दी है । वीणा के मुख्य तीन तारों की भांति मानव शरीर में तीन नाड़िया ( इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना ) हैं। आयुर्वेदाचार्यों के मतानुसार ये नाड़ियां वात, पित्त, कफ इन त्रिदोषों से सम्बन्धित हैं । संगीत के स्वर भी त्रिदोषों से संबंधित हैं । बाईस श्रुतियों पर स्थापित सप्त स्वरों को तीन श्रेणी में विभाजित किया गया है । चार श्रुति वाले शब्द सा म, प तीन श्रुति वाले स्वर रे, ध और दो श्रुति वाले स्वर ग और नि । सामवेद में उदात्तादि स्वर भेद का जो उल्लेख किया गया है वे स्वर, ये ही हैं ।
वीणा के तारों पर जब मिजराव से आघात करते हैं तो तारों की कहा जाता है । यहां
विद्वानों का मत है कि अक्षर की ध्वनि का
।
कार होती है । इस भंकार को झणणण या झननन 'न' और 'ण' दो व्यञ्जनों का प्रयोग किया गया है 'ण' के स्थान पर 'न' का प्रयोग करने पर भी उक्त उद्देश्य पूरा हो जाता है ।
हिन्दी वर्णमाला के कुछ शब्दों में 'ण' के स्थान पर 'न' का प्रयोग अखरता नहीं है पर जिन शब्दों में 'ण' की ध्वनि का महत्व है वहां 'ण' को उच्चारण करना ही होगा तभी सम्बन्धित शब्द का सही स्वरूप स्पष्ट होगा क्योंकि 'न' दन्ति व्यञ्जन है और 'ण' टक्कर से उत्पन्न होता है । 'न' की ध्वनि सूक्ष्म है और 'ण' बृहद् ध्वनि वाला अक्षर है ।
णमोकार मंत्र, में 'नमो' के उच्चारण से ध्वनि उत्पन्न होती है वह स्वरमय एवं 'न' व्यंजन से बृहद् होने से साधक के शरीर की हृदय तंत्री को अधिक समय तक तरंगित करती है। इससे मंत्रोच्चारण करने वाले साधक का ध्यान इधर-उधर नहीं होकर अपने लक्ष्य की ओर निश्चित गति से अग्रसर होता हुआ सफलता प्राप्त करता है ।
मंत्र के प्रारम्भ में 'नमो' शब्द के 'ण' की ध्वनि गतिमान होती हुई शरीर के रोम-रोम को झंकृत कर देती है और अन्तिम 'णं' उक्त ध्वनि को रोकता है | रोकने का कार्य बिन्दु के कारण होता है। मंत्र के पांचों पदों का क्रम इसी प्रकार चलता है । अगर 'नमो' के स्थान पर नमो और अन्तिम ताणं के स्थान पर तानं के रूप में उच्चारण किया जाए तो अजीब सा लगता
है ।
'नमो' शब्द का जब मुख वीणा द्वारा उच्चारण करें तो श्वास क्रिया
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खण्ड १९, अंक ३
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