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संदेश-शीर्षक बुकलेट से उद्धृत । ४. ई० पामस्टीर्ना ने अपने पत्र के साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा
को विश्वशांति पर त्रिधर्म-घोषणा शीर्षक से अक्टूबर ७ सन् १९४३ को की गई केथोलिकों, यहूदियों और प्रोटेस्टेन्टों की घोषणाओं के आधार पर कौंसिल ऑफ क्रिस्चियन खण्ड जियूज (बिट्रेन) अमेरिका की ओर से जारी मई १९४४ की विज्ञप्ति भी भेजी
थी। विज्ञप्ति का हिन्दी अनुवाद आगे दिया जा रहा है । ५. श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, कलकत्ता के प्रकाशन से
उद्धृत । ६. श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, कलकत्ता का प्रकाशन--विश्वशांति और उसका मार्ग । विश्वधर्म सम्मेलन के लंदन-कार्यालय की ओर से प्राप्त पत्र का हिन्दी अनुवाद
लंदन, १ अक्टूबर, १९४४ प्रिय महाशय,
__ सर्वत्र यह भावना दृढ़तर होती जा रही है कि जब तक मानबीय गतिविधि का संचालन उन नैतिक नियमों के आधार पर नहीं होता जोकि सामान्यतया संसार के समस्त धर्मों में मान्य एवं सन्निहित हैं, तब तक संसार में वास्तविक एवं चिर स्थायी शांति की स्थापना नहीं हो सकती है। युद्ध के समाप्त होने पर जब राजनीतिज्ञगण मानव जाति की भावी शासन-व्यवस्था की रूपरेखा का निर्माण करेंगे तब विश्व के धर्माचार्यों और आध्यात्मिक चेतना-सम्पन्न नरनारियों का यह कर्त्तव्य हो जायगा कि वे अपनी वाणी को जनसाधारण तक पहुंचायें।
सन् १९४३ के अक्टूबर में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में प्रायः १४० प्रोटेस्टेन्ट, कैथोलिक और यहूदी सम्प्रदाय के अधिकारी प्रवक्ताओं द्वारा विश्वशांति पर एक विज्ञप्ति प्रकाशित हुई थी। उक्त विधर्म विज्ञप्ति में निम्नलिखित सात सिद्धांत घोषित किए गए हैं----
१. संसार की सत्ता का व्यवस्थापन नैतिक नियमों के द्वारा हो। २. व्यक्तियों के स्वत्व सुरक्षित रहें। ३. दलित, निर्बल और वर्णवाली जातियों के स्वत्वों की रक्षा की
जाय। ४. अल्पसंख्यक जातियों के अधिकार सुरक्षित रहें। ५. न्यायपूर्ण शांति को कायम रखने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्थायें
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तुलसी प्रज्ञा
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