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________________ सन्देहेनाऽनुपलमुदयं गच्छताऽमूच्छल्था वाक्, सर्वेसूक्ष्माः परमगुरुताऽभूत् प्रतीक्षा-क्षणानाम् ॥ प्रतीक्षा के क्षण कितने कष्टकर होते हैं । यह सर्वविदित है । १६. सूक्ति-सौन्दर्य--अन्य काव्य-विधाओं की अपेक्षा गीति-काव्य में सूक्तियों का अधिक विनियोजन होता है। जब कवि भावना, कल्पना एवं संगीत के माध्यम से आत्माभिव्यंजना में संलग्न हो जाता है तब सूक्तियों का उद्भावन अपने आप होने लगता है। इसके लिए कवि अलग से कोई आयास नहीं करता बल्कि उसका व्यक्तिगत अनुभव ही शब्दों के माध्यम से स्फारणता को प्राप्त करता है । अश्रु वीणा का प्रत्येक पद्य उत्कृष्ट-सूक्ति का निदर्शन है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं १. श्रद्धा-स्वादो न खलु रसितो हारितं तेन जन्म ॥४॥ जिसने श्रद्धा का स्वाद नहीं चखा उसका जन्म वृथा है । २. श्रद्धा-पात्रं भवति विरलस्तेन कश्चित्तपस्वी ।।५।। श्रद्धा का उपयुक्त पात्र कोई विरला साधक ही होता है। ३. भक्त्युद्रेकाद् द्रवति हृदयं द्रावयेत्तन्न कं कम् ।।७।। भक्ति के उद्रेक से भक्त का हृदय पिघल जाता है और दूसरे के हृदय को भी आर्द्र कर देता है । ४. आशास्थानं त्वमसि भगवन् ! स्त्री जनानामपूर्वम् ।।१४।। स्त्रियों (अशरण जीवों) के लिए भगवान् ही एकमात्र आशास्थान होते ५. प्रत्यासत्त्या भवति निखिलाऽमीष्टसिद्धेनिमितम ॥१५॥ निकट में की गई महापुरुषों की उपासना इष्टसिद्धि का निमित्त बनती है, भले वह कसे ही की जाए। ६. अन्त साराः सहजसरसा यच्च पश्यन्ति गूढानन्तर्भावान् सरसमरसं जातु नो वस्तु जातम् ।।१६।।। जो व्यक्ति स्वभाव से सरस तथा आत्मा में ही सारभूत तत्वों का अनुभव करने वाले होते हैं वे दूसरों के गूढ़ अन्तर्भावों को महत्त्व देते हैं । सरस-नीरस बाह्य पदार्थों का उनकी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं होता है। 5. इष्टेऽनिष्टाद् व्रजति सहसा जायते तत्प्रकर्षों ।।१७।। जब व्यक्ति अनिष्ट से सहसा इष्ट को प्राप्त करता है तो उसे अपूर्व हर्ष का अनुभव होता है। ८. कार्यारम्भे फलवति पलं न प्रमादो विधेयः, सिद्धिर्वन्ध्या भवति नियतं यद विधेयश्लथानाम् ।।२७।। कार्यारम्भ में प्रमाद करना ठीक नहीं होता है क्योंकि जो व्यक्ति खंड १९' अंक ३ १८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524577
Book TitleTulsi Prajna 1993 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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