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________________ मुखचंद्र नगररमणियों की मुखशोभा को ह्रस्व करने वाला कांतिरूप ज्योत्सनाजल से आकाश-मंडल को प्रक्षालित सुंदरियों का दर्प-भंजक झूले पर झूलता हुआ दिखाई पड़ रहा है। " विरहव्यथिता-राजा के विरह में उसकी स्थिति कुछ अन्य हो गयी है । एक स्थान पर रहने पर भी प्रिय मिलन नहीं हो पाता है। इसमें नायिका अपने पूर्व दुष्कृतों को ही कारण मानती है । वह विरहणी लम्बी-लम्बी श्वांस ले रही है, कृशता के कारण मणिवलय आंखों आंसुओं के के साथ-साथ गिर रहे हैं। राजा के वियोग में उसकी जीवनाशा भी दुर्बल हो गयी है। शीतलचंदन संतापदायक, चंद्रमा कष्टकारक और उसका हास्य अब स्मृति का विषय हो गया है। ज्योत्स्ना उष्ण, चंदनरस गरलसदृश और हार घाव पर नमक छिड़कने जैसे लग रहे हैं । रात्रि शरीर को तपाने वाली तथा मृणाली बाण पंक्ति हो गई है । ६९ विवाह वेषविभूषिता--विवाह मण्डप में क० मं० उपस्थित है । ब्राह्मण कपिजल के द्वारा विवाह कार्य सम्पादित करवाया जाता है । राजा उसके रूप पर मुग्ध हो जाता है । वह साक्षात् कामदेव की पताका, शृगाररस की शरीरिणी लक्ष्मी, पूर्णिमा के चंद्रमा की चांदनी, मोतियों की बनी मंजषा, रत्नमयी अंजन शलाका और मधुभास की लक्ष्मी की भांति प्रतीत हो रही ___मानवीय सौंदर्य के अंतर्गत मानिनी देवी, विदूषक, दासियां एवं भैरवानंद का सौंदर्य श्लाघ्य है । प्राकृतिक सौंदर्य --विवेच्य सड़क में प्रकृति का सुंदर चित्रण किया गया है। संध्या, रात्रि, प्रातःकाल, दिन, ज्योत्स्ना, वसंत, ग्रीष्म, कमल, भौंरा चंदन, मालती पुष्प एवं पवन का सौंदर्य आह्लाद्य है।। वसंत ऋतु की उन्मादकता सर्वत्र प्रथित है। शिशिर ऋतु को बलपूर्वक जीतकर वसंत ऋतु का महोत्सव आ चुका है जं वाला मूहकंकुमम्मि वि धणे वति ढिल्लाअरा, तं मण्णे सिसिरं विणिज्जिअ बला पत्ती वसंतूसवो ॥ वसंत ऋतु में प्राकृतिक सौंदर्य संबंधित हो जाता है :--- जाअं कुंकुमपंकलीढमरढी गण्डप्पहं चंपअं, थोआवट्टिअदुद्धमुद्ध कलिआ पंफुल्लिाआ मल्लिआ । मूले सामलमग्गलग्गभसलं लक्खिजए किंसुअं, पिज्जतं भमरेहिं दोसु वि दिसाभाएसु लग्गेहि व ।। उपर्युक्त गाथा में चम्पा, मल्लिका और किंशुक पुष्प का रमणीय चित्रण हुआ है। अण्ड १९, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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