________________
पर शस्त्र प्रयोग में अपना अहित देख लेते हैं। जो दूसरों के भय, आशंका, लज्जा, दबाब या प्रलोभन से शस्त्रीकरण नहीं करते वे समय आने पर शस्त्रीकरण से बच नहीं सकते । समता का आचरण व सबकी स्वतंत्र सत्ता स्वीकार करने वाले ही निःशस्त्रीकरण के उपासक हो सकते हैं । किसी भी प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का हनन करने वाले, उन पर शासन करने वाले, उन्हें दास बनाने वाले उन्हें परिताप देने वाले, उनका प्राण वियोजन करने वाले अहिंसक और निःशस्त्र नहीं हो सकते ।" ७.२ निःशस्त्र ही अभय हो सकते हैं
__ भगवान् महावीर निःशस्त्रीकरण का संबंध वीरता से जोड़ते हैं।" "पणथा वीरा महावीहिं"--यह उक्ति हमें महात्मा गांधी का स्मरण कराती है जो मानते थे-कायर कभी अहिंसा का पालन नहीं कर सकता । निःशस्त्रीकरण सभी को अभय प्रदान कर सकता है जबकि शस्त्रीकरण का मूल भय
शस्त्र के द्वारा झुकाना प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है। जिस विजय के लिए शस्त्र बनाने व चलाने पड़े, वह प्रतिस्पर्धा का स्थान है। जो सशस्त्र है वह सभय है, पराजित है । जो अशस्त्र है-वह अभय है, विजयी है । शस्त्र प्रतिस्पर्धा लाता है। एक शस्त्र को व्यर्थ करने के लिए दूसरा, दूसरे को व्यर्थ करने के लिए तीसरा, यह क्रम आगे से आगे बढ़ता है।३ अशस्त्र में स्पर्धा नहीं होती। ८. उपसंहार
___ सभ्य जीवन की यह विडम्बना है-हम युद्ध तो नहीं चाहते किन्तु भोग-विलास की निन्दा करने से हिचकिचाते हैं, शस्त्र त्याग नहीं चाहते ! शांति के प्रयत्न करने वाले सभी संगठनों के लिए भगवान महावीर का यह संदेश है----यदि शांति चाहते हैं तो सुख की आशा छोड़ें । यह सत्य हैसुख की आसक्ति हम पूर्णत: नहीं छोड़ सकते किन्तु यह भी सत्य है-सभी अपनी इच्छाओं का नियमन तो कर ही सकते हैं । हम सभी प्रकार की हिंसा नहीं छोड़ सकते पर निरर्थक हिंसा तो छोड़ ही सकते हैं। संदर्भ : १. नियुक्ति में षटजीवनिकाय के लिए भावशस्त्र-असंयम बताया गया है ।
देखें-आयारो (JVB प्रकाशन) पृ० ५७ पर उद्धृत टिप्पण ११ २. इमस्सचेव जीवियस्स,
परिवंदण-माण ण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं । (आयारो, १.१०)
९८
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org