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दिगम्बर-परम्परा में गौतम स्वामी
D डॉ. अनिल कुमार जैन
जैनों की दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में गौतम स्वामी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये भगवान् महावीर के प्रथम गणधर थे । गौतम स्वामी वर्तमान जैन वाङमय के आद्य-प्रणेता थे। दिगम्बर आर्ष ग्रन्थों में भगवान् महावीर को भाव की अपेक्षा समस्त वाङमय का अर्थकर्ता अथवा मूलतंत्र कर्ता अथवा द्रव्य श्रुत का कर्ता बतलाया है और गौतम गणधर को उपतन्त्र कर्ता अथवा द्रव्य श्रुत का कर्ता कहा गया है। भगवान महावीर की दिव्य ध्वनि को सुनकर आपने द्वादशांग की रचना की । जिनवाणी की पूजन में निम्न प्रकार कहा गया है
"तीर्थंकर की धुनि, गणधर ने सुनि, अंग रचे चुनि ज्ञानमयी । सो जिनवर वाणी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भयी ॥"
इसीलिए गौतम गणधर को मंगलाचरण में भी भगवान् महावीर के तुरन्त बाद ही स्मरण किया जाता है
"मंगलम् भगवान् वीरो मंगलम् गौतमो गणी। मंगलम् कुन्दकुन्दाद्यो, जैन धर्मोस्तु मंगलम् ।।"
लेकिन यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि इतना सब होने पर भी गौतम स्वामी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं होती है। दिगम्बर आम्नायों के आगम ग्रन्थों-तिलोय पण्णति (४/१४७५-१४९६), हरिवंश पुराण (६०/४७६-४८१), धवला (९/४,१ ४४/२३०), कषाय पाहुड़ (१/६४/८४) तथा महापुराण (२/१३४-१५०) में उनके केवलज्ञान प्राप्त करने तथा मोक्ष जाने सम्बन्धी तो जानकारी है, लेकिन विस्तृत जीवन वृतान्त का यहां भी अभाव है। सोलहवीं शताब्दी के मण्डलाचार्य धर्मचन्द्र द्वारा विरचित गौतम चरित्र' नामक एक ग्रन्थ में उनके जीवन के सम्बन्ध में थोड़ा सा प्रकाश डाला गया है। पूर्वभव
गौतम स्वामी के पूर्व भवों की कुछ जानकारी 'लब्धि विधान व्रत कया' से प्राप्त होती है । इसके रचयिता सिंघई किशनसिंह पाटनी हैं जो कि
खण्ड १९, अंक २
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