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________________ १०८ दोहे हैं जिन्हें दोहावली प्रीतिप्राघट्य, रूपवर्णन, भक्ति, ध्यान, अनुराग, उपासना, भावना, विप्रयोग, मोहनी मंत्र, मनोवती, लीला समर्पण, गुरुमहिमा, वगुणनिष्ठापंचविकार, यज्ञ सिद्धांत और धारना शीर्षकों में विभक्त किया गयाहै। इससे प्रस्तुत कृति के वर्ण्य विषय का अनुमान सहज लग जाता है । श्याम श्रोत्रिय ने 'प्रेम गीतमाला' मूल रूप में इस पुस्तक में प्रकाशित की है। वल्लभ-सखा ने कतिपय नाटक भी लिखे और मंचित कराए थे। ऐसे ही एक नाटक 'रसिक शिरोमणि' से 'गोचारण लीला' प्रसंग के कुछ अंश एक पृष्ठ पर (पृ. सं. १-) उद्दधृत किए हैं । कदाचित् उनकी नाट्यरचना-प्रतिमा का नमुना देने के लिए ही संपादक ने यह चुनाव किया है। इस संकलन में दुसरी कृति कपट सदा' सुबल लीला) समाहित है जिसमें ३० झलना छंद हैं। राधाजी सुत्रल सखा नामक एक गोप का रूप धारण कर कृष्ण को छलती हैं । प्रेम क्षेत्र में यह लीला अत्यंत रंजक मानी इन दोनों कृतियों के अतिरिक्त श्रोत्रियजी ने बल्लभ सखा के २५ छंद भी संकलित किए हैं। इनमें इष्ट वंदना भावना, कामना, परिचय, बाललीला, शृंगार, नखणिख, पावस ऋतु, नायिका (खडिता, व्यवहार कुशलता रामभक्ति के छंद, अंगद रावण से, होरी छंद, देशभक्ति के छंद आदि के विविध रंग मिलते हैं। श्री श्याम श्रोत्रिय 'वल्लभ-सखा' के प्रपौत्र हैं। कवि की रचनाओं से उनका आत्मीय लगाव और भावनात्मक संबंध है। बड़ी निष्ठा और रुचि से उन्होंने यह संकलन प्रकाशित किया है। ~~आनंदमंगल वाजपेयी तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524576
Book TitleTulsi Prajna 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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