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तीर्थंकरों की निजी बानी तक पहुंचा सकता है। मैं आपको धन्यवाद के साथ इस विषय को पूर्ण रूप देकर पूरे आचारांग (श्रुतस्कंध-१) के पाठ को इस ढंग से तैयार करने का अनुरोध करता हूं ।
पू. मुनिश्री शीलचन्द्रविजयजी, महुवा (गुजरात), २२-१२-९२
खण्ड १९, अंक २
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