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उमास्वामी ने इस प्रकार अपने कई सूत्रों का निर्माण आचार्य कुन्दकुन्द की शब्दावली के आधार पर किया है। किन्तु कुछ सूत्रों में उन्होंने अपनी
ओर से कई शब्द जोड़े भी हैं और विषय को अधिक स्पष्ट किया है। कुछ स्थानों पर नये सूत्र भी बनाये हैं । पं० दलसुख भाई मालवणिया का यह कथन सत्य है, कि कुन्दकुन्द की ज्ञानचर्चा का दोहन कर उमास्वामी ने विस्तार से ज्ञान के भेद, स्वरूप एवं उनके विषय आदि सम्बन्धी अनेक सूत्रों की रचना की है आचार्य कुन्दकुन्द ने बन्ध के चार हेतु गिनाये हैं (समय १०९), जबकि उमास्वामी ने इनमें "प्रमाद" को जोड़कर पाँच हेतु माने हैं-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग (तत्वा. ७.१)। २. वट्टकेरकृत मूलाचार
मूलाचार के कर्ता वट्टकेर एवं आचार्य कुन्दकुन्द दो अलग आचार्य हैं और उनकी कृतियां भिन्न हैं, विद्वानों के प्रयत्नों से अब यह लगभग निश्चित रूप से माना जाने लगा है। इसी प्रसंग में विद्वानों ने वट्टकेर और कुन्दकुन्द के सम्बन्ध की भी चर्चा की है । कुन्दकुन्द की रचनाओं की गाथाओं को मूलाचार में पर्याप्त स्थान मिला है। समकालीन या निकटकालीन होने के नाते वट्टकेर का कुन्दकुन्द से प्रभावित होना स्वाभाविक है । किसी एक प्राचीन स्रोत का दोनों के द्वारा उपयोग किया जाना भी उन्हें एक-दूसरे से दूर नहीं करता। दोनों आचार्यों की कुछ समानताएं द्रष्टव्य हैं--- कुन्दकुन्द-साहित्य
मूलाचार (१) वर्धमान को नमस्कार (द. पा. १)
वही, ३.१ (२) अरहन्त और सिद्धों को नमस्कार (लि. पा. १) वही, ७.१ (३) सिद्धों को एवं २४ तीर्थकरों को नमस्कार
वही, ८.१ (बा. अनु )
दोनों ही आचार्य विषय-कथन की पहले प्रतिज्ञा करते हैं । यथा(क) कुन्दकुन्द-एसो पणमिय सिरसा समयमियं सुणह बोच्छामि ।
(पंचा. २) वट्टकेर-पणमिय सिरसा बोच्छं समासदो पिंडसुद्धी दु ।
(मूलाचार ६.१) (ख) ग्रन्थ के उपसंहार करने की शैली भी दोनों में समान है। (ग) दोनों में कई गाथाएं समान हैं । यथा--- समयसार-रत्तो बंधदि कम्मं मुंचदि जीवो विरागसंपण्णो
एसोजिणोवदेसो तम्हा कम्मेसु मारज्ज ।।१५०॥ मूलाचार-रागी बंधई कम्मं मुंच्चई जीवो विरागसंपण्णो ।
एसोजिणोवएसो समासदो बंधमोक्खाणं ॥५.५० ।
खण्ड १९, अंक २
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