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साहित्य के ग्रन्थों में कुन्दकुन्द के काव्य-शिल्प का क्या अनुकरण है ? ( ९ ) कुन्द - कुन्द की भाषा - सामग्री का परवर्ती वैयाकरणों / ग्रन्थकारों ने क्या उपयोग किया है ? (१०) कुन्दकुन्द के तत्त्व- चिन्तन एवं दार्शनिक मतों का भारतीय दर्शन के विकास में क्या स्थान है ? (११) जैन दार्शनिकों ने कुन्दकुन्द के दर्शन व चिन्तन को क्या महत्त्व दिया है ? एवं ( १२ ) कुन्दकुन्द के साहित्य की गाथाएं, पंक्तियां, सूक्तियां एवं विचार शैली परवर्ती जैन साहित्य में कहां और किस रूप में अंकित है ? इत्यादि ।
परवर्ती प्रभाव के इन विभिन्न आयामों में से यहाँ केवल अंतिम आयाम पर ही कुछ दिग्दर्शन उपस्थित किया जा रहा है । विभिन्न प्रसंगों में कई विद्वानों ने जो संकेत उपस्थित किये हैं उन्हें एक साथ यहां देखा जा सकता है । इससे एक आधार भूमि बन सकती है, परवर्ती जैन साहित्य में कुन्दकुन्द के प्रभाव को रेखांकित करने की । यहां प्रमुख रूप से दिगम्बर जैनाचार्यों के ही उन उल्लेखों का दिग्दर्शन है, जो कुन्दकुन्द के साहित्य से संबंधित हैं । जैनाचार्यों के कालक्रम भी पूर्ण सुनिश्चित नहीं है । फिर भी अधिक प्रचलित क्रम को आधार बनाया जा सकता है। अतः उमास्वामी, वट्टकेर, शिवार्य, यतिवृषभ, समन्तभद्र, सिद्धसेन, पूज्यपाद, जोइन्दु एवं कुमार की रचनाओं में कुन्दकुन्द के अनुकरण को प्रस्तुत करने मात्र का प्रयत्न है यहाँ । किसी आचार्य के समय के विषय में कोई नया विचार करना यहाँ प्रतिपाद्य नहीं है ।
१. उमास्वामीकृत तत्त्वार्थसूत्र :
आचार्य कुन्दकुन्द एवं उमास्वामी के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध माना जाता है । प्राचीन परम्परा के अतिरिक्त कुन्दकुन्द साहित्य को दृष्टि में रखकर उमास्वामी ने तत्त्वार्थ सूत्र का प्रणयन किया है । परिणामस्वरूप कुछ सूत्र शब्दश: और कुछ अर्थश: कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से अपना सम्बन्ध रखते हैं । विद्वानों ने इस विषय में तुलनात्मक अध्ययन के लिए कुछ संकेत दिये हैं ।' कुन्दकुन्द साहित्य के वाक्यों के साथ तत्त्वार्थ सूत्र के सूत्रों को रखकर कुछ समानता देखी जा सकती है
कुन्दकुन्द
(१) दंसण णाणचरिताणिमोक्खमग्गो
( पंचास्तिकाय, १६४)
(२) दव्वं सल्लक्खणियं ( पंचा०, १०) (३) फासो रसो य गन्धो वण्णो सद्दो य पुग्गला ( प्रव. १.५६ )
(४) आगासस्तवगाहो ( प्रव. २०४१ ) (५) आसवणिरोहो ( संवरो) समय: १६६
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तत्वार्थ सूत्र सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग : १.१
सद्रव्यलक्षणम् ५.२९ स्पर्श रसगंधवर्णवन्तः
पुद्गलाः २.२१
आकाशस्यावगाह : ५.१२ आश्रवनिरोधः संवरः ९.१
तुलसी प्रज्ञा
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